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राजा अपने अंगत कार्योंमे खास उसे पूछा करते थे, और वह अपनी बुद्धिके अनुसार नेकनियतसे अच्छी सलाह दिया करता था इसीलिये वह अपने आपको बडा प्रतिष्ठापात्र राजमान्य मानता था ।
दामोदर मंत्री जो विमलकुमारका कट्टर विरोधी था उसके घर उसकी "मैना " नामक युवान कन्या थी, सामन्तने उसे कई दफा देखा था और उसके सर्वाङ्ग सुन्दर रूपपर वह मोहित था इसीहि लिये वह दामोदरके घर केई दफा जाया करता और विमलके विरुद्धकी सलाहोंमे दामोदरमंत्रीकी हां
हां मिलाया करता था, परन्तु दामोदरकी अन्तरङ्ग लालसा कुछ और ही थी । वह चाहता था कि, इस सुरूपा कन्याको यदि राजा देखे और इसकी याचना करे तो मेरा राजाके साथ एक गाढ संबंध होजानेसे विमलकुमार वगैरह अपने प्रतिपक्षियों को एक लाठीसे हाँक कर दीन दुनिया से पार कर दूं । इसमे सामन्तकी वह बडी मदद समझते थे परन्तु - "सन्मार्गस्खलनाद् भवन्ति विपदः प्रायः प्रभूणामपि ।" जब सामन्त को इस बातका निश्चय हुआ कि "मैना " को दामोदर राजाकी राणी बनाना चाहता है तो सामन्त निरास होगया, आजसे लेकर दामोदर के साथका उसका संबन्ध भी खतम होगया । इतनाही नही बल्कि उस दिनसे सामन्तने दामोदरको तिरस्कारकी दृष्टिसे देखना शुरु कर दिया ।
विमलकुमारके चन्द्रावती जानेके पीछे जब सामन्तसे राजा भीमदेवकी एकांतमें बातचीत हुई तो सामन्तने दामो
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