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॥सर्वत्र सुखिनां सौख्यम् ॥ पाटण के अमीरलोगों में श्रीदत्त शेठ भी बडे प्रतिष्ठित व्यक्ति थे इनको नगरशेठकी पद्वी थी, इसलिये शहरमें कुल लोग उनकी इज्जत करते थे। पाटणके श्रीसंघमें शेठजी अच्छे माननीय और प्रतिष्ठापात्र थे, व्यापारी लाइन में आप बडे सिद्धहस्त थे, प्रख्यात धंधे प्रसिद्ध व्यापार आपके अनवरत अभ्यस्त थे, राजदरबारमें श्रीदत्तशेठकी बहुत अच्छी प्रतिष्ठा थी, महाराजा भीमदेव जब राजसिंहासनपर बैठे थे तब राजतिलक इसी प्रसिद्ध भाग्यशालीके हाथसे हुआ था । शेठजीके एक श्रीदेवी नाम सुरूपा सुभगा कन्या थी, अभीतक इसकी सगाई करनेके लिये घर देखा जाताथा परन्तु सर्वगुण संपन्न स्थान अभीतक नहीं मिलाथा। जिस दिन विमलकुमारके घोडेने तूफान मचाया उस दिन सामने जो स्त्रीमंडल आ रहा था उसमें श्रीदेवीभी शामिल थी, उसने जब विमलकुमारकों देखा तो उसके हृदयमन्दिरमें जो स्नेहभावना उत्पन्न हुइथी, उसके कोमल हृदयपर जो स्नेहशस्त्र पडाथा उसे कविलोक अनेक रूपसें वर्णन करें, लेखक अनेक युक्तियोंसें लिखें तोभी वोह उस मनोगत भावकी महिमा अगोचर है, वोह भावना उसके अनुभविकों ही मालूम होती है। • श्रीदत्तके एक चन्द्रकुमार नाम पुत्र था, इस सुपुत्रके सद
नसें शेठजी बडे सुखी और स्वस्थ थे । किसी सुप्रसिद्ध प्रतिष्ठापात्र धनाढ्य शाहुकारकी ललिता नामक पुत्रीके साथ चन्द्रकुमारका पाणिग्रहण हुआ हुआ था । ललिता अपने
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