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सुरेषु यद्वन्मघवा विभाति यथैव तेजखिषु चण्डरोचिः । न्यायानुयायिष्विव रामचन्द्रस्तथाधुना हिन्दुषु भूध्रुवोऽयम् १९ पिछले पद्यमें "हिन्दुषु" पद ध्यानमें रखने लायक है ।
अच्छा तो इस उपयोगी और महत्त्वपूर्ण ग्रन्थका इतनाही परिचय बहुत हो गया । जो लोग गुजराती नहीं जानते, पर संस्कृतके प्राचीन लेखों और पुस्तकोंके प्रेमी हैं, वेभी इस पुस्तकके अवलोकन और संग्रहसे लाभ उठा सकते हैं।
और नहीं तो, इसके कितनेही लेखोंके सरस पद्योंसे अपना मनोरञ्जन अवश्य ही कर सकते हैं।
-महावीरप्रसाद द्विवेदी।
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