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प्रत्यक्ष दृष्टान्तोंकी ओर लक्ष्य न दें। उनकी कार्यपद्धतिकी सूक्ष्म बुद्धिसे पर्यालोचना किये विनाही हम आज कालके आविष्कारोंको देख सुनकर अपने पूर्वजोंकी बुद्धिकी अबगणना कर बैठते हैं । किसीने कैसे अच्छे शब्दोंमें कह दिया है कि"मिलव मिल्टण मॉरलेके बनगये हलका बगोश,
"बेचदी बाज़ारे लंडनमें है सारी खिरदो होश । "मगरवी तहज़ीब का तु इतना मतवाला हुआ,
धर्मकी कीमत तेरे एक चायका प्याला हुआ" । हमें अफसोस है उन प्रसिद्ध इतिहास लेखकोंकी धर्मद्विष्टता पर कि जिन्होंने बुद्धिबलको धर्मद्वेषसे विफल करते हुए इन प्राचीन तीर्थों का उल्लेख करनेमें संकोच किया है । सप्ताश्चर्य जैसे ग्रंथोंके लेखकोंने हजारों कोसोंकी दूरीपर रहेहुए पिरामिडोंके और डायना देवी जैसी देव मूर्तियोंके वर्णन लिखनेमें अपना बुद्धिबल खर्च दिया, परंतु जिन आश्चर्यजनक हिन्दके अलंकार रूप दिव्य मंदिरोंको देखनेके लिये विलायतोंसे प्रेक्षक आते हैं और देख देखकर सिर धुनाते हैं उनका नाम मात्र भी वह अपनी कलमसे, नहीं मालूम, क्यों न लिखसके। यह धन्यवाद है पंडित गौरीशंकरजी ओझाको कि
जिन्होंने इन पुनीत एवं प्राचीन दर्शनीय स्थानोंका थोडे परंतु मध्यस्थ वृत्तिके अक्षरोंमें वर्णन कर दिया है । इससे हमारा आशय यह है कि, जमाना बदला है। दुनियामें
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