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राजाने हर्षके आंसु वर्षाते हुए पुत्रको सारा हाल सुनाया और कहाबेटा ! इन महायोगीश्वरके प्रौढप्रभावसे आज तेरा पुनर्जन्म हुआ है। इसलिये सकुटुंब अपने सब इन महापुरुषके ऋणी हैं।
॥प्रतिज्ञापालन ॥ गुरुमहाराजका महा अतिशय देख उनको साक्षात् ईश्वरका अवतार मानकर उनके चरणोंमें पडे और प्रार्थना करने लगे कि खामीनाथ ! आप हमारा राज्यभण्डार सर्वख लेकर हमको कृतार्थ करें।।
आचार्य बोले हमने तो कोई राज्यकी लालसासे यह काम नहीं किया, अगर हमें राज्यकी इच्छा होती तो अपने पिताका राज्यही क्यों छोडते ? इस वास्ते स्वर्ग मोक्षका देनेवाला, अक्षय सुखका देनेवाला, सर्वजीवोंको आनन्दका देनेवाला, सर्वज्ञ अरिहंत परमात्माका कहा विनयमूल धर्म प्रहण करो।
राजाने प्रार्थना की कि प्रभु ! आप मेरे सर्वप्रकारसे उपकारी हैं, धर्माधर्मका खरूप में कुछ नहीं जानता, आप जैसे फरमावेंगे वैसा मैं अवश्य अंगीकार करूंगा।
सूरिजी जानतेथे कि “यथा राजा तथा प्रजा" राजा धर्मी हो तो प्रजाभी धर्मी होती है यह सोचकर आचार्य महाराजने सवालाख मनुष्यों सहित राजाको जैन धर्मका उपासक बनाया और उन सवालाख मनुष्योंको दृढ जैनधर्मी बनाकर उनका "ओसवाल" नामका एक वंश स्थापन किया । राजाने चरम तीर्थकर "श्रीमहावीर स्वामी"का मन्दिर बनवाकर सूरिजी महाराजके हायसे उस मन्दिरकी प्रतिष्ठा करवाई । प्राचीन इतिहासोंसे पता चलता है कि मारवाड़ राज्यान्तर्गत 'कोरटा' गामके श्रीसंघनेभी श्रीमन्महावीर खामीका मन्दिर बनवाया, और रत्नप्रभसूरिजीको उस मन्दिरकी प्रतिष्ठाका मुहूते पूछा तथा अति आग्रहसे प्रार्थना की कि उस मौकापर आप श्रीजीने जरूरही पधारना आपश्रीजीके हाथसेही हम प्रतिष्ठा करवायेंगे।
आचार्य महाराजने उनको मुहूर्त दिया, परन्तु उसी मुहूर्तपर “भोसिबाजी में प्रतिष्ठा करानेका वचन आप राजाको देचुके थे, इस वाले आत्म. सन्धिसे दो रूप बनाकर एकही दिन एकही मुहूर्तमें आपने दोनों जगहकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com