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जीव-विज्ञान
3.मिश्र-भाव - यह दोनों का मिला जुला मिश्र-भाव है। कुछ का उपशम हो गया है या दब
गया है, कुछ का क्षय हो गया है इसलिए इसको क्षयोपशम भाव कहते हैं।
क्षयोपशम जिसका प्रयोजन बन गया है वह क्षयोपशम भाव कहलाएगा। 4.औदयिक-भाव - कर्म के उदय से जो भाव उत्पन्न होता है उसे औदयिक भाव कहते हैं। कर्म
के जो भाव हैं उनमें हमें कर्म का फल नहीं मिल रहा है। जो औपशमिक भाव हैं इसमें हमने कर्मों को दबा दिया, अथवा क्षायिक-भाव से क्षय कर दिया है उसके बाद में जो आत्मा का परिणाम उत्पन्न हुआ वह हमारी आत्मा का वास्तविक भाव कहलाएगा। औदयिक-भाव में जो हमें भाव आएगा वह कर्म
के कारण मिला हुआ भाव होगा, वह आत्मा का भाव नहीं होता। 5.पारिणामिक-भाव - पारिणामिक-भाव एक ऐसा भाव है जो न तो कर्म के उदय से होता है, न
कर्मों के उपशम से होता है, न कर्मों के क्षय से होता है और न कर्मों के
-जीव के असाधारण भाव औपशमिक क्षायिक | मिथू | औदयिक | पारिणामिक
(क्षायोपशमिक)
नाम
18
21
| भेद कर्म
कर्म निरपेक्ष
उपशम (दबना)
क्षय (अत्यन्त विनाश)
संबंधी
क्षयोपशम | (कुछ उपशम, कुछ क्षय)
उदय (फल)
कार्य संबंधित
8 कर्म
मोहनीय कर्म
|| 4 घातिया || 4 घातिया ||
कर्म
कर्म
उदाहरण
बैठना
जीवों की संख्या
जल में मैल || जल का पूर्ण || जल में कुछ || गदला जल || जल सामान्य का नीचे || शुद्ध होना मैल का
दबना एवं कुछ का
प्रकट होना संख्यात || अनंत ॥ अनंत || अनंत || समस्त जीव
अथवा ||(औपशमिक से|| (क्षायिक से || (क्षायोपशमिक || (औदयिक से असंख्यात | अनंतगुणे) || अनंतगुणे) | से विशेष ||विशेष अधिक) 4-14 गुण 1-12
अधिक) || 1-14 स्थानवती+ || गुणस्थानवती 1-14 | गुणस्थानवती+ सिद्ध भगवान
गुणस्थानवर्ती | सिद्ध भगवान