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जीव-विज्ञान
समाधान-औपशमिक भाव यहाँ सबसे पहले कहने के कई कारण हैं।
पहला कारण यह है कि जीव को जब भी कभी मोक्षमार्ग की उपलब्धि होती है अथवा मोक्षमार्ग के उपयोगी किसी भी भाव की आवश्यकता होती है तो उसमें सबसे पहले जो भाव आयेगा, वह औपशमिक भाव ही होगा। अर्थात् संसार मार्ग में जो जीव चले रहे हैं उनके भाव जब भी बदलेंगे
और कोई नया भाव जब भी उत्पन्न होगा वह औपशमिक भाव ही होगा। औपशमिक भाव ही क्यों होगा? इसकी जानकारी भी आगे के सूत्र में दी जाएगी। यहाँ कहा गया है-सबसे पहले मोक्षमार्ग में जो भाव होगा वह औपशमिक भाव ही होगा और यह औपशमिक भाव भी यदि होता है तो सम्यग्दर्शन के साथ होता है। इसको कहते हैं-औपशमिक सम्यग्दर्शन का भाव। अनादिकाल से जीव मिथ्यादृष्टि होते हैं उनको जब भी कभी सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होगी तो सबसे पहले इसी औपशमिक सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होगी। उससे उत्पन्न होने वाला जो भाव होगा वह औपशमिक भाव ही होगा। इसलिए यहाँ सबसे पहले औपशमिक भाव को लिखा है।
दूसरा कारण यह है कि औपशमिक भाव वाले जीवों की संख्या सबसे कम होती है। तीन लोक की चारों गतियों में यह औपशमिक भाव किसी भी जीव को हो सकता है, लेकिन ये जीव बहुत कम होते हैं। इसलिए भी औपशमिक भाव को सबसे पहले लिखा है।
दूसरे नम्बर पर आचार्य कहते हैं क्षायिक भाव। औपशमिक के बाद क्षायिक भाव लिखा हुआ है और इन दोनों भावों को एक साथ जोड़ा भी गया है। आपने संस्कृत पढ़ी होगी तो इसे कहते हैं द्वन्द्वसमास पद।-औपशमिक और क्षायिक इन दोनों को जोड़ करके लिखा गया है, इनका गठबंधन करके लिखा है जबकि अन्य सभी भावों को अलग-अलग लिखा है। इसका भी एक कारण यह है क्योंकि औपशमिक भाव और क्षायिक भाव-इन दोनों में समानताएं हैं। जैसी विशुद्धि हमें औपशमिक भाव से प्राप्त होती है वैसी ही विशुद्धि हमें क्षायिक भाव से भी प्राप्त होती है। औपशमिक भाव वाले जीवों की संख्या से क्षायिक भाव वाले जीवों की संख्या भले ही अधिक होती है।
यह कथन हमें यहाँ सम्यग्दर्शन की अपेक्षा से समझना चाहिए। औपशमिक-सम्यग्दृष्टि की अपेक्षा क्षायिक-सम्यग्दृष्टि जीव असंख्यात-गुणे अधिक होते हैं। यह एक गणित है अनन्त-गुणे नहीं, संख्यात-गुणे नहीं, असंख्यात-गुणे अधिक होते हैं। क्षायिक भाव वाले जीव औपशमिक भाव वाले जीवों से असंख्यात गुणे होते हैं और इन दोनों सम्यग्दर्शन की विशुद्धि समान होती है। इसलिए भी इनका गठबंधन हो जाता है। अतएव इन दोनों भावों को आचार्य महाराज ने यहाँ पर पहले लिखा
शंका- क्या काल की अपेक्षा से इन भावों को एक साथ लिखा है? समाधान-काल की अपेक्षा से इसलिए नहीं कह सकते क्योंकि आगे जो क्षायोपशमिक भाव आएगा उसका काल उससे भी अधिक है। अतः जो कारण यहाँ दिये गये है केवल उन्हीं कारणों को समझना।