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जीव-विज्ञान
दिखाई नहीं दे रहा है। सुनाई नहीं दे रहा है या सुनना कम हो गया। ये सब चीजें उपकरणों की कमी से होती है। द्रव्य इन्द्रिय की कमी से होती है क्योंकि भावेन्द्रिय में तो क्षयोपशम उसका बना हुआ है। उसका सुधार कोई भी डॉ. नहीं कर सकता। द्रव्येन्द्रिय में सुधार अपेक्षित होता है।
इन पाँच इन्द्रियों के नाम आचार्य आगे के सूत्र में बताते हैं
स्पर्शन-रसन-घ्राण-चक्षुः-श्रोत्राणि।।19 ।। अर्थ-स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र ये पाँच इन्द्रियों के नाम हैं।
ये पाँच इन्द्रियाँ है। पहली स्पर्शन इन्द्रिय, दूसरी रसना इन्द्रिय, तीसरी घ्राण इन्द्रिय, चौथी चक्षु इन्द्रिय और पाँचवी श्रोत्र इन्द्रिय हैं। यह क्रम भी इसीलिए रखा गया है क्योंकि ये इन्द्रियाँ क्रम-क्रम से ही प्राप्त होती हैं। अक्रम से कोई भी इन्द्रियाँ प्राप्त नहीं होती हैं। जिसके पास एक इन्द्रिय है तो एक स्पर्शन इन्द्रिय ही होगी। दो इन्द्रिय जीव है तो उसे स्पर्शन के बाद रसना इन्द्रिय ही मिलेगी अन्य बीच में से कोई इन्द्रिय नहीं मिलेगी। तीन इन्द्रिय जीव है तो उसे क्रम से प्राप्त क्षयोपशम के अनुसार घ्राण इन्द्रिय मिलेगी, चौथी इन्द्रिय चक्षु इन्द्रिय और पाँचवी श्रोत्र इन्द्रिय ही मिलेगी। इन सभी इन्द्रियों की प्राप्ति बड़े-बड़े पुण्य कर्मों को करने से होती है। अपनी आत्मा में अच्छे कर्मों के कारण क्षयोपशम होने से इन इन्द्रियों की हमें उपलब्धियाँ होती हैं। इसलिए इनको लब्धि कहा जाता है या उपलब्धि कहा जाता है। अगर देखा जाए तो इसको कोई उपलब्धि मानता ही नहीं है, इसकी तरफ कोई ध्यान देता ही नहीं है कि हमने कितने पुण्य किये, कितने जन्मों के बाद हमको ये उपलब्धि हुई कि पाँच इन्द्रियों के क्षयोपशम मिले। कितने कीड़े-मकोड़े तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय होते हैं। जिनका जन्म एवं मरण होता रहता है। इस उपलब्धि को जब आप ध्यान में नहीं रखोगे तो आप परेशान रहोगे। जैसे ही हमारी आँख खुली और पाँच इन्द्रियाँ मिली तब हम दूसरी उपलब्धि की ओर दौड़ने लग जाते हैं। वह उपलब्धि क्या है? वह उपलब्धि है-मन की तृष्णाओं की पूर्ति। क्या हमने कभी ये विचार किया कि ये जो पाँच इन्द्रियाँ मिली वो किससे मिली? इनके पीछे किसका हाथ है? अगर आप कभी अपने अतमन से इन इन्द्रियों के बारे में सोचोगे तो आपको लगेगा इसमें किसी का हाथ नहीं है। यह तो अपने ही किसी विशेष पुण्य और पुरुषार्थ का कार्य है। जिससे हमको ये उपलब्धियाँ प्राप्त हुई हैं। ऐसी उपलब्धियों को प्राप्त करने के बाद इनका घात करना या इनके द्वारा अपना अहित करना ऐसा कोई ज्ञानी व्यक्ति कभी नहीं करेगा। हमें हमेशा यह विचार करना चाहिए कि हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि ये हमारी पाँच इन्द्रियाँ हैं। इनका हमें सदपयोग करना है। कभी-कभी इनका दुरुपयोग हो जाता है।
जब आप अधिक मोबाइल को देखेंगे, टी.वी. को देखेंगे तो इन इन्द्रियों के ऊपर भी आघात पहुँचता हैं। उदयपुर की एक घटना है-एक व्यक्ति के दोनों कानों में मोबाइल लगा रहता था। एक से बात खत्म की तो दूसरे से बात शुरू हो जाती और उससे बात खत्म होती तो तीसरे से बात शुरू हो जाती। सारे दिन उसके कानों पर मोबाइल लगा रहता था। वह एक बहुत बड़ा व्यापारी था।
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