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जीव-विज्ञान
आचार्य इस सूत्र में कहते हैं-ये सभी स्थावर जीव हैं। पृथ्वी, अप अर्थात् जल, तेज का अर्थ है अग्नि, वायु और वनस्पति ये पाँच प्रकार के स्थावर जीव होते हैं। इन सब जीवों में एक ही इन्द्रिय होती है। इन जीवों में कौन-सी इन्द्रिय होती है ? इन जीवों में स्पर्शन इन्द्रिय होती है। एक इन्द्रिय से ही इनका जीवन चलता है और इन जीवों में भी वे सभी भाव पड़े हुए हैं जो आपको पहले समझाया है। जीव तो बाहर से देखने में बहुत सूक्ष्म है लेकिन उसके अंदर यह सारा संसार पड़ा हुआ है। गति नाम कर्म का उदय, कषाय का उदय, कोई न कोई लिंग, लेश्या, मिथ्यात्व, असंयत, सिद्धत्व इन सभी भावों का वेदन यह जीव करेगा। इन चीजों पर विश्वास कौन करेगा? जिसको इन सर्वज्ञ भगवान के ज्ञान से कुछ ज्ञान मिलेगा वह ही कुछ सीख पाएगा अन्य दूसरी साइंस से आपको कुछ भी ज्ञान नहीं मिलेगा। जीव-विज्ञान का तो सिर्फ नाम होता है शरीर के विषय में जानकारी करते रहते हैं और नाम कहलाता है-जीव-विज्ञान । वह जीव विज्ञान है ही नहीं। जीव के अंदर क्या है? यह तो इस प्रकार के सूत्रों को पढ़कर ही समझ आता है। पृथ्वीकायिक जीव भी जीव है। पृथ्वी एक जीव है। आज का विज्ञान आज तक इसको सिद्ध ही नहीं कर पाया। अभी भी विज्ञान के सामने चेलेंज है इन चीजों को सिद्ध करने का । अभी तो उसने केवल इसमें से दो चीजों की ही सिद्धि की है। वह जल में जीव मानने लगा है और वनस्पति में जीव मानने लगा है। बाकी के तीनों स्थावरों में भी जीव होते हैं यह उसके दिमाग में नहीं आ रहा है। क्योंकि ये दिखते ही नहीं है। एकेन्द्रिय जीव कभी दिखते ही नहीं है। इनमें भी जो माना है वह दिखने से नहीं माना है। कुछ न कुछ उसमें Sensation दिखाई दे गया है।
जैसे-वनस्पति होती है और जब हम उसके सामने जाते है, उसके पास अच्छे भाव करते हैं, उसके लिए अच्छा सिंचन देते हैं तो उसमें कुछ अलग के तरीके लक्षण आ जाते हैं। जब हम उसके सामने खड़े होकर कोई नकारात्मक भावनाएँ करते हैं, उसके लिए हम धूप आदि की कमी कर देते हैं तो उसमें कुछ अलग तरीके के emotions दिखाई देते हैं। इनको पकड़कर ही विज्ञान ने कहा है कि इसमें भी जीव हैं, क्योंकि इसके emotions बदल रहे हैं। लेकिन यह सिद्धि करने का बहुत अच्छा तरीका नहीं है। फिर भी, यह ठीक है कि आप नहीं मान रहे थे, आपने किसी न किसी रूप में तो माना कि यह भी एक जीव है। ऐसी भी कई चीजें होती है जिसमें Sensation होता है लेकिन जीव नहीं होता है। विज्ञान इसका अंतर नहीं कर पाता क्योंकि उसे समझ नहीं आता कि कहाँ बैक्टीरिया है? कहाँ कैमीकल प्रोसेस है?
जैसे–मान लो दही है। जब दही जमाया जाता है तो उसमें दूध से जमने की जो प्रक्रिया होती है वह पूरी की पूरी एसिड के कारण होती है और उस पूरी की पूरी प्रक्रिया में एक Chemical process चलता है। उसमें जीवों की उत्पत्ति नहीं होती है। लेकिन विज्ञान जब उस प्रक्रिया को सूक्ष्मदर्शी यंत्र से देखता है, तो उसमें उसको जीव जैसे दिखाई देते हैं। एक कोशकीय जीव उसको दिखाई देते हैं। यह उनकी अपनी अवधारणा है। अगर वह दही शुद्ध-दूध से बना हुआ है, मर्यादित दूध से बना है, तो उस दही में किसी भी प्रकार के कोई जीव नहीं होंगे। अमर्यादित दूध होगा तो
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