________________
जीव-विज्ञान
हमें यहाँ समझना है कि ज्ञान उत्पन्न हुआ, किस कारण से हुआ?ज्ञानावरण-कर्म के क्षय से क्षायिकज्ञान होता है। हमें किस कर्म के क्षय से दर्शन होता है? दर्शनावरणी कर्म के क्षय से क्षायिकदर्शन होता है। क्षय का अर्थ है-आत्मा से कर्म का हमेशा के लिए हट जाना। यह भाव यदि एक बार उत्पन्न हो गया तो यह कभी नहीं छूटेगा और आत्मा में हमेशा बना रहेगा। अनन्तकाल तक बना रहेगा। इसलिए क्षायिक-भावों को सादी अनन्त भाव भी कहते हैं। सादी का अर्थ है-प्रारम्भ इनका होगा परन्तु एक बार प्रारम्भ होने के बाद अनन्तकाल तक बना रहेगा। शंका- किस कर्म के उदय से हमें ज्ञान होगा? समाधान-कर्म के उदय से हमें कभी ज्ञान नहीं होता क्योंकि कर्म के उदय से तो ज्ञान ढक जाता है। ज्ञानावरणी कर्म का उदय रहेगा तो वह आपके ज्ञान को ढक देगा। उस कर्म का हमें क्षय करना है और यदि क्षय न कर सके तो उसके बीच की एक और प्रक्रिया है जिसका नाम है- क्षयोपशम । क्षयोपशम से भी ज्ञान उत्पन्न होता है। यहाँ जिस ज्ञान की बात की जा रही है वह तो क्षय से हो रहा है जो केवलज्ञानियों को होता है। साधारण मनुष्यों के ज्ञान के विषय में आगे के सूत्र में बताया जाएगा।
हमें यहाँ केवलज्ञानियों के ज्ञान के विषय में समझना हैं। उनमें क्षायिकज्ञान आ गया, क्षायिकदर्शन आ गया, और क्षायिकदान आ गया। क्षायिकदान का अर्थ हुआ -दान अन्तराय कर्म के क्षय से उनमें क्षायिकदान का परिणाम आ गया। इसके बाद लाभ-अन्तराय कर्म के क्षय से उनको क्षायिकलाभ की प्राप्ति होगी, भोग-अन्तराय कर्म के क्षय से उन्हें क्षायिक-भोग की प्राप्ति होगी, उपभोग-अन्तराय कर्म के क्षय से उन्हें क्षायिक-उपभोग की प्राप्ति होगी और वीर्य-अन्तराय कर्म के क्षय से उन्हें क्षायिक-वीर्य की प्राप्ति होगी। यह वीर्य शब्द 'आत्मा की शक्ति के लिए प्रयोग किया जाता है। आत्मा की अनन्त शक्ति जो उन्हें प्राप्त हो गई है उसे क्षायिक वीर्य कहते हैं। इन्हीं क्षायिक शब्दों के साथ हम अनन्त शब्द भी जोड़ सकते हैं और यह अनन्त शब्द जुड़ जाने से अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तशक्ति और अनन्तसुख, जो अनन्त चतुष्टय हम पढ़ते और सुनते हैं वह यही अरिहन्त भगवान के साथ जुड़ जाते हैं। इन नौ भावों को ही हम नव-लब्धियाँ भी कहते हैं। इस तरह से ये नौ भाव क्षायिक-भाव हो जाते हैं। शंका- इन भावों का काम क्या है? समाधान-क्षायिकज्ञान, केवलज्ञान और अनन्तज्ञान ये सभी पर्यायवाची है। इसी तरह से क्षायिकदर्शन, केवलदर्शन और अनन्तदर्शन भी समानार्थी हैं। अर्थात् भगवान् (अरिहंत देव )अपने ज्ञान और दर्शन से अनन्त को जानने की और अनन्त को देखने की क्षमता रखते हैं। अपने ज्ञान और दर्शन से वे अनन्त पदार्थों को जानेंगे और अनन्त पदार्थों को एक साथ देखेंगे। यह क्षायिकदर्शन और क्षायिकज्ञान का काम है। यहाँ एक प्रश्न और उठता है कि क्षायिकदर्शन और क्षायिकज्ञान से तो
14