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इस खरतर पट्टावलीकार ने संकेत शब्द में स्पष्ट १०२४ का समय लिखा है, जिसको आधुनिक खरतर किसी भी उपाय से १०८० कर ही नहीं सकते हैं। क्योंकि 'दससय चउबीस' के लिये तो विकल्प कर दिया कि २० को चार गुना करने से ८० होता है पर 'वर्षेऽब्धि पक्ष भ्रंशसि (१०२४), इसके लिये क्या करेंगे? अर्थात् खरतरों के पूर्वजों के मतानुसार जिनेश्वरसूरि के शास्त्रार्थ एवं खरतर विरुद का समय वि. सं. १०२४ का मानना ही पड़ेगा
और १०२४ में न हुआ था दुर्लभ राजा का जन्म और न हुआ था जिनेश्वरसूरि का अवतार, तो शास्त्रार्थ और खरतर विरुद का तो पता ही कहाँ था?
अब रहा दूसरा विकल्प वि. सं. १०८० का । यह भी कल्पना मात्र ही है, कारण वि. सं. १०८० में जिनेश्वरसूरि जावलीपुर में स्थित रह कर आचार्य हरिभद्रसूरि के अष्टकों पर वृत्ति रच रहे थे, ऐसा खुद जिनेश्वरसूरि ने ही लिखा है। तब दुर्लभ राजा का राज वि. सं. १०६६ से १०७८ तक रहा।
____ अर्थात् १०८० में दुर्लभ राजा का राज ही पाटण में नहीं था फिर शास्त्रार्थ किसने किया और खरतर बिरुद किसने दिये? शायद राजा दुर्लभ मर कर भूत हो गया हो और वह दो वर्ष से वापिस आकर जिनेश्वरसूरि को १. खरतरों ने पाटण में दुर्लभ राजा का राज वि. सं. १०६६ से १०७८ होने में कुछ शंका
करके एक गुजराती पत्र का प्रमाण दिया है, वि. सं. १०७८ तक का कहना शंकास्पद है इत्यादि । यह केवल भद्रिकों को भ्रम में डालने का जाल है। क्योंकि आज अच्छे अच्छे विद्वानों एवं संशोधकों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि पाटण में राजा दुर्लभ का राज ठीक वि. सं. १०७८ तक ही रहा था, इसके लिए देखों - पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का लिखा 'सिरोही राज का इतिहास'-आपने दुर्लभ का राज सं. १०७८ तक का लिखा है तथा 'गुर्जरवंश भूपावली' में दुर्लभ का राज वि. सं. १०७८ तक ही रहा था बाद उसका पट्टधर भीम राजा हुआ। अब खरतरों को कुछ भान होने लगा तो उन्होंने दुर्लभ के स्थान में भीम लिखना शुरु किया है, जैसे खरतर यति रामलालजी ने १०८० में दुर्लभ (भीम) और खरतर-वीरपुत्र आनन्दसागरजी ने श्री कल्पसूत्र के हिंदी अनुवाद में भी वि. सं. १०८० में राजा दुर्लभ (भीम) ऐसा लिखा है। इससे यही सिद्ध होता है कि वि. सं. १०८० में पाटण में दुर्लभ का राज नहीं किंतु राजा भीम का राज था । पर इनके पूर्वजों ने १०८० राजा दुर्लभ का राज लिख दिया, अतः उन्होंने दुर्लभ (भीम) अर्थात् दुर्लभ का कार्य कोष्टक में भीम कर दिया । इसका मतलब यही है कि वि.सं. १०८० में राजा दुर्लभ का नहीं पर राजा भीम का ही राज था । अतः खरतरों के लेख से खरतरों की पट्टावलियां जिसमें जिनेश्वरसूरि के शास्त्रार्थ एवं खरतर बिरुद का समय वि. सं. १०२४ तथा १०८० का ही लिखा है, वह कल्पित एवं मिथ्या साबित होती है। अब इस विषय में दूसरे प्रमाणों की जरुरत ही नहीं है।