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४. कई कहते हैं कि जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि अपने शिष्य परिवार के साथ पाटण गये थे।
५. कई खरतर कहते हैं कि केवल जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि ही पाटण पधारे थे।२
६. कई खरतर यह भी कहते हैं कि वर्धमानसूरि जिनेश्वरसूरि के साथ पाटण गये वहाँ वर्धमानसूरि का स्वर्गवास हो गया था, बाद जिनेश्वरसूरि का शास्त्रार्थ हुआ था। २. जिनेश्वरसूरि का शास्त्रार्थ किसकी सभा में
१. कई खरतर कहते हैं कि राजा दुर्लभ की सभा में शास्त्रार्थ हुआ।
२. कई खरतर राजा दुर्लभ (भीम) की सभा में शास्त्रार्थ हुआ कहते हैं। यह खरतर पट्टावली बताती है कि वर्धमानसूरि ने आबू के मन्दिरों की प्रतिष्ठा करवाने के बाद सरस्वती पाटण जाकर जिनेश्वर और बुद्धिसागर को दीक्षा दी । जबकि आबू के मंदिरों की प्रतिष्ठा का समय वि. सं. १०८८ का बताया जाता है। अतः जिनेश्वरसूरि की दीक्षा सं. १०८८ के बाद हुई होगी और उसके बाद जिनेश्वरसूरि पाटण गये होंगे? इस पट्टावली से यह सिद्ध होता है कि या तो वर्धमानसूरि द्वारा आबू के मंदिर की प्रतिष्ठा १०८८ में करवाना गलत है या जिनेश्वर का पाटण जाना गलत है अथवा पट्टावली कल्पित है।
'लेखक' विहरन्तौ शनैः श्रीमत्पत्तनं प्रापतुर्मुदा। सद्गीतार्थपरिवारौ तत्र भ्रमंतौ गृहे गृहे ॥
"प्र. च. अभयदेवसूरि प्रबन्ध" व्याजहरथ देवास्मद् गृहे जैनमुनी उभौ
"प्र. च. अभयदेव प्रबन्ध" श्रीजिनेश्वरसूरिः स च बुद्धिसागरेण साधू मरुदेशाद् विहारं कृत्वा अनुक्रमेण गुर्जरदेशे अणहल्लपुरपत्तने समागतः
"खरतर पट्टावली, पृष्ठ ११" ३. श्रीगुजरइ अणहिल्लपाटणि आवी वर्धमानसूरि स्वर्गे हुआ तेना शिष्य श्री जिनेश्वरसूरि पाटणिराज श्रीदुर्लभनी सभाई इत्यादि
"सिद्धान्त मग्नसागर, पृष्ठ ९४" ४. दुर्लभ राजा सभायां ।
"खरतर पट्टावली, पृष्ठ १०" ५. यति रामलालजी ने महाजनवंशमुक्तावली पृष्ठ १६७ पर लिखा है कि राजा दुर्लभ
(भीम) की सभा में... वीरपुत्र आनन्दसागरजी ने कल्पसूत्र के हिन्दी अनुवाद में राजा दुर्लभ (भीम) ही लिखा है