________________
२५३
राखेचा को प्रतिबोध देकर जैन बनाया। उसकी संतान राखेचा कहलाई पुंगलिया वगैरह इस जाति की शाखा है
"ख. य. रा. म. मु. पृष्ठ ४२ पर लिखा है कि वि. सं. ११८७ में जिनदत्तसूरि ने जैसलमेर के भाटी जैतसी के पुत्र कल्हण का कुष्ट रोग मिटाकर जैन बनाकर राखेचा गौत्र स्थापन किया।"
कसौटी-खुद जैसलमेर ही वि. सं. १२१२ में भाटी जैसल ने आबाद किया तो फिर ११७८ में जैसलमेर का भाटी को जिनदत्तसूरि ने कैसे प्रतिबोध दिया होगा? वाह रे यतियों तुमने गप्प मारने की सीमा भी नहीं रखी।
१२. पोकरणा यह मोरख गौत्र की शाखा है और इनके प्रतिबोधक वीरन् ७० वर्षे आचार्य श्री रत्नप्रभसूरि हैं।
"खर. य. रा. म. मु. पृष्ठ ८३ पर लिखा है कि जिनदत्तसूरि का एक शिष्य पुष्कर के तलाब में डूबता हुआ एक पुरुष और एक विधवा औरत को बचा कर उनको जैन बनाया और पौकरणा जाति स्थापना की।" ।
कसौटी-जिनदत्तसूरि का देहान्त वि. सं. १२११ में हुआ। उस समय पूर्व की यह घटना होगी। तब पुष्कर का तलाब वि. सं. १२१२ में प्रतिहार नाहाड़राव ने खुदाया। बाद कई अर्सा से गोहों पैदा हुई होगी इस दशा में जिनदत्तसूरि के शिष्य ने स्त्री पुरुष को गोहों से कैसे बचाया होगा यह भी एक गप्प ही है।
१४. कोचर-यह डिड गौत्र की शाखा है और विक्रम की सोलहवीं शताब्दी में मंडीर के डिडू गोत्रीय मेहपालजी का पुत्र कौचर था, उसने राव सूजाजी की अध्यक्षता में रह कर फलौदी शहर को आबाद किया। कोचरजी की सन्तान कौचर कहलाई, इसके मूल गौत्र डिडू है और इनके प्रतिबोधक वीरान् ७० वर्षे आचार्य रत्नप्रभसूरि ही थे।
"ख. य. रा. म. मु. पृ. ८३ पर इधर उधर की असम्बंधित बातें लिख कर कौचरों को पहले उपकेशगच्छीय फिर तपागच्छीय और बाद खरतरे लिखा है, इतना ही नहीं बल्कि कई ऐसी अघटित बातें लिख कर इतिहास का खून भी कर डाला है।"
कसौटी-इस जाति के लिये देखो "जैन जाति निर्णय' नामक पुस्तक वहाँ विस्तार से उल्लेख किया है। और कोचरों का उपकेशगच्छ है।
१५. चोरडिया-यह आदित्यनाग गौत्र की शाखा हैं। आदित्यनाग गौत्र आचार्य रत्नप्रभसूरि स्थापित महाजन वंश की अठारह शाखा में एक है।
ख. य. रा. म. मु. पृष्ठ २३ पर लिखा है कि पूर्व देश में अंदेरी नगरी में राठोड़ राजा खरहत्य राज करता था। उस समय यवन लोग काबली मुल्क लुट रहे थे। राजा खरहत्थ अपने चार पुत्रों को लेकर वहा गया। यवनों को भगा कर वापिस आया पर उनके चार पुत्र मुच्छित