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यदि कई अज्ञ ओसवाल अपने मूल प्रतिबोधक आचार्यों एवं गच्छ को भूल कर खरतरों के उपासक बन गए हो और इसी से ही कहा जाता हो कि ओसवाल खरतरोंने बनाए हैं। यदि हा, तब तो ढूंढिये तेरहपन्थियों को ही ओसवाल बनानेवाले क्यों न मान लिया जाय? कारण कई अज्ञ ओसवाल इनके भी उपासक
खरतरों ! अब तक आप को इतिहास का तनक भी ज्ञान ही नहीं, यही कारण है कि ऐसे स्पष्ट विषय को भी अडंग बडंग कह कर अपने हृदय के अन्दर रही हुई द्वेषाग्नि को बाहर निकालकर अपनी हांसी करवा रहे हो।
भाईयो। अब केवल जबानी जमा खर्च का जमाना नहीं है। आज की बीसवीं शताब्दी इतिहास का शोधन युग है। यदि आप को ओसवालों का स्वयंभू नेता बनना है तो कृपया ऐसा कोई प्रमाण जनता के सामने रक्खो ताकि समग्र ओसवाल जाति नहीं तो नहीं सही पर एकाद ओसवाल तो किसी खरतराचार्य का बनाया हुआ साबित हो सके।
(१६) कई खरतर लोग जनता को यो भ्रम में डाल रहे हैं कि ८४ गच्छों में सिवाय खरतराचार्यों के कोई भी प्रभाविक आचार्य नहीं हुआ है। जैन समाज पर एक खरतराचार्यों का ही उपकार है। इत्यादि।
समीक्षा-खरतरों ! आपको इस बात के लिए लम्बे चौड़े विशेषणों से कहने की जरुरत नहीं है। थली के अनभिज्ञ मोथों को भ्रम में डालने का अब जमाना नहीं है। एक खरतरगच्छ में ही क्यों पर मेरे पास जो ३०० गच्छों की लिस्ट है उन सभी गच्छों में जो जो प्रभाविक आचार्य हुए हैं वे सब पूज्यभाव से मानने योग्य हैं, किन्तु आप का हृदय इतना संकीर्ण क्यों है कि जो आप दृष्टिराग में फंस कर केवल एक खरतरगच्छ के आचार्यों की ही दुन्दुभी बजा रहे हो? आप के इस एकान्तवादने ही लोगों को समीक्षा करने को अवकाश दिया है। भला, आप जरा एक दो ऐसे प्रमाण तो बतलाईये कि खरतरगच्छ के अमुक आचार्यने जनोपयोगी कार्य कर अपनी प्रभाविकता का प्रभाव जनता पर डाला हो? जैसे कि :१. आचार्य रत्नप्रभसूरिने उपकेशपुर में राजा प्रजा को जैनी बना कर महाजनसंघ
की स्थापना की। इसी प्रकार यक्षदेवसूरि, कक्कसूरि, देवगुप्तसूरि, सिद्धसूरि
आदि ने अनेक नरेशों को जैन बनाये। २. आचार्य भद्रबाहुने मौर्यमुकुट चन्द्रगुप्तनरेश को प्रतिबोध कर जैन बनाया। ३. आर्यसुहस्तीने सम्राट् सम्प्रति को प्रतिबोध कर जैन बनाया।