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के समसामायिक किसी प्रामाणिक ग्रंथ का प्रमाण जनता के सामने रख अपनी बात को सिद्ध कर बतलावे । याद रहे यह बीसवीं शताब्दी है। असभ्य शब्दों में गालीगलौज करने से या आधुनिक यतियों के लिखे पोथों का प्रमाण से अब काम नहीं चलेगा।
दीवार नंबर ८ कइ खरतर लोग जिनदत्तसूरि के जीवन में यह भी लिखते है कि योगिनियोंने दादाजी को सात वरदान दिए, जिनमें एक यह वरदान भी है कि खरतरगच्छ में यदि कोई कुमारी कन्या दीक्षा लेगी तो वह ऋतुधर्म में नहीं आएगी इत्यादि।
समीक्षा-गच्छराग और गुरुभक्ति इसीका ही तो नाम है, फिर चाहे वह बात शास्त्र और कुदरत से खिलाफ ही क्यों न हो? पर अपने गच्छ या आचार्यों की महिमा बढ़ाने के लिए वे ऐसी भद्दी बातें कहने में तनिक भी विचार नहीं करते हैं। भला इस खरतरगच्छ में बहुत सी कुमारी कन्याओंने दीक्षा ली थी और वर्तमान में भी विद्यमान हैं, किन्तु ये सबकी सब यथाकाल ऋतुधर्म को प्राप्त होती हैं। इस हालत में खरतरों को समझना चाहिये कि या तो वे कुमारी कन्याएं दीक्षा लेने के उपरान्त कुमारी नहीं रह सकी या योगिनियों का वचन असत्य है। खरतरों को जरा सोचना चाहिये कि ऐसी भद्दी बातों से गच्छ व दादाजी की तारीफ होती हैं या हंसी? क्योंकि इस प्रत्यक्ष प्रमाण को कोई भी इन्कार नहीं कर सकता हैं।
दीवार नंबर ९ आधुनिक कइ खरतर लोग प्रतिक्रमण के समय दादाजी का काउस्सग्ग करते हैं तब कहते हैं कि "चौरासी गच्छ शृंगारहार" और आधुनिक लोग जिनदत्तसूरि के जीवन में बताते हैं कि ८४ गच्छ में ऐसा कोई भी प्रभाविक आचार्य नहीं हुआ हैं, इस से जिनदत्तसूरि को ८४ गच्छवाले ही मानते हैं। इत्यादि ।
समीक्षा-चौरासी गच्छों को तो रहने दीजिये पर जिनवल्लभसूरि को संतान अर्थात् जिनशेखरसूरि के पक्षवाले भी जिनदत्तसूरि को प्रभाविक नहीं मानते थे। यही कारण है कि जिनदत्तसूरि से खिलाफ होकर उन्होंने अपना रुद्रपाली नामक अलग गच्छ निकाला। जब एक गुरुके शिष्यों की भी यह बात है तो अन्य गच्छों के लिए तो बात ही कहां रही ?
चौरासी गच्छों में जिनदत्तसूरि के सदृश कोई भी आचार्य नहीं हुआ, शायद इसका कारण यह हो कि ८४ गच्छों में किसीने स्त्रीपूजा का निषेध नहीं किया परन्तु एक जिनदत्तसूरिने ही किया। और भी भगवान् महावीर के छः कल्याणक, श्रावक को तीन बार करेमि भंते, सामायिक उच्चराना। पहले सामायिक और बाद में