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वगैरह परगनों में ओसवाल अठारह खोपरी दिशा तथा थारे ठेठु गुरु कवलागच्छरा भट्टारक सिद्धसूरिजी है जिणोंने तथा इणांरा चेला हुवे जिणांने गुरु करीने मानजो ने जिको नहीं मानसी तीको दरबार में रु. १०१ कपुररा देशीने परगना में सिकादर हुसी तीको उपर करसी। इणोंरा आगला परवाणां खास इणोंकने हाजिर हैं।
(१) महाराजाजी श्री अजितसिंहजीरी सिलामतीरो खास परवाणो सं. १७५७ रा आसोज सुद १४ रो।
(२) महाराज श्री अभयसिंहजीरी खास सिलामतीरो खास परवाणो सं. १७८१ रा जेठ सुद ६ रो।
(३) महाराज बड़ा महाराज श्री विजयसिंहजीरी सिलामतीरो खास परवाणो सं. १८३५ रा आषाढ वद ३ रो।
(४) इण मुजब आगला परवाणा श्री हजुर में मालुम हुआ तरे फेर श्री हजुररे खास दस्तखतोरो परवाणो सं. १८७७ रा वैशाख वद ७ रो हुओ है तिण मुजब रहसी।
विगत खांप अठारेरी-तातेड़, बाफणा, वेदमुहता, चोरडिया, करणावट, संचेती, समदड़िया, गदइया, लुणावत, कुम्भट, भटेवरा, छाजेड़, वरहट, श्रीश्रीमाल, लघुश्रेष्ठी, मोरख-पोकरणा, रांका, डिडू इतरी खापांवाला सारा भट्टारक सिद्धसूरि और इणोंरा चेला हुवे जिणांने गुरु करने मानजो अने गच्छरी लाग हुवे तिका इणांने दीजो।
अबार इणोंरेने लुंकोरा जातियोंरे चोरडियोंरी खांपरो असरचो पड़ियो, जद अदालत में न्याय हुवोने जोधपुर, नागोर, मेड़ता, पीपाड़रा चोरड़ियोंरी खबर मंगाई तरे उणोंने लिखायो के मारे ठेठु गुरु कवलागच्छरा है तिणा माफिक दरबारसु निरधार कर परवाणो कर दियो हैं सो इण मुजब रहसी श्री हजूररो हुकम है। सं. १८७८ पोष वद १४।
इस परवाना के पीछे लिखा हैं (नकल हजूररे दफ्तर में लीधी छे)
इन पांच परवानों से यह सिद्ध होता है कि अठारा गोत्रवाले कवला (उपकेश) गच्छ के उपासक हैं। यद्यपि इस परवाना में १८ गोत्रों के अन्दर से तीन गोत्र कुलहट चिंचट (देसरड़ा), कनोजिया इस में नहीं आये हैं। उनके बदले गदइया, जो चोरड़ियों की शाखा है, लुनावत और छाजेड़ जो उपकेश गच्छाचार्योंने बाद में प्रतिबोध दे दोनों जातियां बनाई हैं इनके नाम दर्ज कर १८ की संख्या पूरी की है। तथापि मैं यहां केवल चोरड़िया जाति के लिये ही लिख रहा हूं। शेष जातियों के लिये देखो "जैनजाति निर्णय" नामक मेरी लिखी हुई पुस्तक।
ऊपर के शिलालेखों से और जोधपुर दरबार के पांच परवानों से डंके की