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मिलता रहें।
खरतरों का यह सर्व प्रथम कर्तव्य है कि वे हो-हा का हुल्लड न मचा कर जिनदत्तसूरि को गुणयुगप्रधान होना सिद्ध करने के लिए ऐसे ऐसे प्रमाण ढूंढ निकालें कि जिन पर सर्व साधारण विश्वास कर सके।
दीवार नं. ४ कई लोग यह भी कह उठते है कि जिनदत्तसूरिने अपने जीवन में १,२५,००० नये जैन बनाए थे।
समीक्षा :- जैनाचार्योंने लाखों नहीं पर करोड़ों अजैनों को जैन धर्म के उपासक बनाये जिसके कई प्रमाण मिलते हैं। पर जिनदत्तसूरिने किसी एकादो अजैन को भी जैन बनाया हो इसका एक भी प्रमाण नहीं मिलता है। हां जिनवल्लभसूरिने चित्तौड़ के किले में रहकर भगवान् महावीर के पांच कल्याणक के बदले छ: कल्याणक की नयी प्ररुपणा की तथा जिनदत्तसूरिने पाटण में स्त्री जिनपूजा का निषेध किया इस कारण जैनसंघने इसका बहिष्कार कर दिया था। इधर इनके गुरुभाई जिनशेखरसूरि के पक्षकार भी जिनदत्तसूरि से खिलाफ हो गए थे। इस हालत में जिनदत्तसूरिने इधर उधर घूमकर भद्रिक जैनों को महावीर के पांच कल्याणक के बदले छ: कल्याणक मनवा कर तथा स्त्रियों को प्रभुपूजा छुड़ाकर बारह करोड़ जैनों में से सवा लाख भद्रिक जैनों को पूर्व मान्यता से पतित बनाकर अपने पक्ष में कर भी लिया हो तो इसमें दादाजीने क्या बहादुरी की ? क्योंकि उस समय जैनियों की संख्या कोई बारह करोड़ की थी और उसमें से यंत्र मंत्र तंत्र आदि कर सवा लाख मनुष्यों को पतित बनाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है जिस से कि खरतरे अब फूले ही नहीं समाते हैं। यदि खरतर इसमें ही अपना गौरव समझते हैं, तो इससे भी अधिक गौरव ढूंढिया तेरहपंथियों के लिए भी समझना चाहिये। क्योंकि दादाजीने तो १२ करोड़ में से सवा लाख लोगों को अपने पक्ष में किया, पर ढूंढिया तेरहपन्थियोंने तो लाखों मनुष्यों से दो तीन लाख लोगों को पूर्व मान्यता से पतित बना कर अपने उपासक बना लिए। कहिये ! अब विशेषता किस की रही? ढूंढियों के सामने तुम्हारे दादाजी के सवा लाख शिष्य किस गिनति में गिने जा सकते हैं?
___अस्तु ! आधुनिक जिनदत्तसूरि के भक्तोंने जिनदत्तसूरि का एक जीवन लिखा है। उसमें जिन जातियों का उल्लेख किया है उनमें से एक दो जातियों के १. 'हम चोरड़िया खरतर नहीं है' नामक किताब देखो.