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श्रीसंघ ने जिनचन्द्रसूरि को बहुत कुछ समझाया कि आपने चातुर्मास एवं बरसात के दिनों में विहार करने का विचार क्यों किया है ? इससे तीर्थंकरों की आज्ञा का भंग, शास्त्राज्ञा का उल्लंघन तथा त्रसस्थावर जीवों की हिंसा और साथ में जैनधर्म की निन्दा होगी। अतः यहां का संघ इस विहार का सख्त विरोध करता है। अतः आपको बरसात के दिनों में एवं चातुर्मास में विहार नहीं करना चाहिये।
जिनचंद्र ने कहा कि बादशाह अकबर का आमंत्रण फरमान आया है इसलिये मुझे आगरे जाना है। लाभालाभ का कारण हो तो साधु चातुर्मास में भी विहार कर सकता है। अतः मेरे विहार के लिये श्रीसंघ को विरोध नहीं करना चाहिये।
श्रीसंघ ने कहा कि महाराज बादशाह अकबर को तो नौ वर्ष पहले आचार्य विजयहीरसूरि ने प्रतिबोध दे दिया था और उसके बाद भी नौ वर्ष हुए उनके साधु उपदेश दे ही रहे हैं। फलस्वरुप बादशाह जैनधर्म का पक्का अनुरागी बन गया है। फिर आप चातुर्मास में विहार करके वहां पधार रहे है तो वहां ऐसा कौनसा नया काम करने का है? यदि आपको पधारना ही है तो चातुर्मास के बाद पधारना और यहा से आगरा कोई ५-१० कोस नहीं है कि आप एक दो विहार में वहाँ पहुच जावें । आगरा यहाँ से करीब ८००-९०० मील के फासले पर है। आपका सब चातुर्मास विहार में ही खत्म हो जायेगा। यदि आप चातुर्मास एवं बरसती बरसात में विहार करोगे तो ग्राम ग्राम जैनधर्म की निन्दा होगी। उपकार करना तो दूर रहा पर जैनधर्म पर एक बड़ा कलंक लगेगा और अन्य मत के लोग कहेंगे कि जैन साधु चातुर्मास एवं बरसात के दिनों में भ्रमण करते फिर रहे हैं। दूसरे त्रस स्थावर जीवों को भी गहरी उत्पत्ति हो गई है। इन जीवों की भी आपको करुणा रखनी चाहिये और आपने चातुर्मास खम्भात में करने का वचन भी दिया था, उसका भी पालन करना कैसे हो सकेगा? अतः यहाँ के श्रीसंघ का तो यही कहना है कि चातुर्मास तो आप यहाँ ही करावें बाद विहार कर आगरे पधारना।
पर जिनचन्द्रसूरि किसकी सुनने वाला था? जब कि उसको तीर्थंकरों की आज्ञा की परवाह नहीं, लोकापवाद का भय नहीं, बस स्थावर जीवों की दया नहीं तो फिर श्रीसंघ की तो वह सुनता ही क्यों ? आखिर श्रीसंघ का सख्त विरोध होने पर भी जिनचन्द्र ने वि. सं. १६४८ को आषाढ़ शुक्ल ८ को खम्भात से विहार १. गुजरात प्रान्त में आद्रा नक्षत्र लग जाने से चातुर्मास ही समझा जाता है और इन दिनों
के पूर्व ही वर्षा होनी शुरु हो जाती है। त्रस स्थावर जीवों की उत्पत्ति भी प्रचुरता से हो जाती है। अतः आर्द्रा नक्षत्र लग जाने के बाद गुजरात में प्रायः जैन साधु विहार नहीं करते हैं यही अभिप्राय खम्भात के श्रीसंघ का था।