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प्रति अपनी भक्ति के चार दिन अपनी ओर से एवं बारह दिन का फरमान लिख दिया कि मेरे राज की जहाँ सत्ता है वहाँ इन बारह दिनों में किसी भी जीव की हिंसा न होगी और यह हुक्म जब तक सूर्यचंद्र रहेगा वहाँ तक बहाल रहेगा।
सूरिजी ने बादशाह के हृदय को इस प्रकार दयामय बना दिया कि अन्यान्य प्रसंगो पर उपदेश देकर एक वर्ष में ६ मास जीव हिंसा बंध करवा दी। बादशाह ने फरमान भी लिख दिया। इतना ही क्यों पर सूरिजी के उपदेश से बादशाह ने जैनों के मुख्य मुख्य शत्रुजय गिरनारादि तीर्थों की रक्षा के निमित्त भी फरमान लिख दिया।
बादशाह ने सोचा कि यह तो सब परोपकार के लिये है पर मैंने सूरिजी को इतनी दूर से बुलाया एवं चातुर्मास करवाया तो इनके लिये मैंने क्या किया? अतः कई सज्जनों की सम्मति लेकर बादशाह ने सूरीश्वरजी के गुणों पर अत्यन्त मुग्ध हो कर सूरीश्वरजी को 'जगद्गुरु' पद से विभूषित कर अपने आपको कृतार्थ हुआ समझा। उस दिन से बादशाह के दिये हुये 'जगद्गुरु' बिरुद से विजयहीरसूरीश्वरजी को 'जगद्गुरु भट्टारक जैनाचार्य विजयहीरसूरीश्वर' कहा एवं लिखा जाने लगा।
अखिल जैन समाज में 'जगद्गुरु बिरुद' विजयहीरसूरीश्वर को ही प्राप्त हुआ है। वास्तव में आप इस पद के योग्य भी थे। कारण एक मुसलमान बादशाह के हृदय को पलट कर उससे एक वर्ष में ६ मास हिंसा बन्द करा देना कोई साधारण बात नहीं थी, परन्तु सूरिजी ने अपने तपतेज और प्रभाव से उसको कर बतलाई । इतना ही क्यों पर किसी की सिफारिश किये बिना खास बादशाह ने सूरिजी के गुणों पर मुग्ध होकर 'जगद्गुरु बिरुद' दे उनका योग्य सत्कार किया।
चातुर्मास समाप्त होने के बाद भी बादशाह का अत्याग्रह था कि अभी आप यहां ही विराजे पर वे समयज्ञ सूरीश्वरजी वहां कब ठहरने वाले थे? फिर भी बादशाह के आग्रह का मान रखने के लिये अपने विद्वान शिष्य उपाध्याय शान्तिचन्द्र व भानुचन्द्रादि को वहां ठहरा कर आपने विहार कर दिया ।
__ तपागच्छ एवं जगद्गुरु विजयहीरसूरिजी के विद्वान साधुओं का बादशाह की सभा में निरन्तर नौ वर्ष तक आना जाना और उपदेश देना चालू रहा था।
१. हीरसोभाग्य काव्य, जगद्गुरु काव्य, विजयप्रशस्ति वगैरह ग्रन्थों में लिखा है कि जगत्
के प्राणि मात्र की हित की भावना के कारण ही बादशाह अकबर ने आचार्य विजयहीर
सूरीश्वरजी को जगद्गुरु बिरुद दिया था और सूरिजी इस पद के पूर्ण योग्य भी थे। २. इस के विस्तृत वर्णन के लिए देखो मुनिवर्य विद्याविजयजी महाराज का निर्माण किया
हुआ ग्रन्थ - "सूरीश्वर और सम्राट"