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पाठक स्वयं सोच सकते हैं कि जिसके अन्दर ओसवाल जाति का खन एवं जैनधर्म का थोड़ा भी गौरव हैं क्या वह परोपकारी पूज्याचार्य रत्नप्रभसूरि के लिए ऐसे नीच शब्दोच्चारण कर सकते हैं ? कदापि नहीं। पर उन जाट मैणों के रत्नप्रभसूरि क्या लगते हैं ? फिर भी उनको यह ख्याल नहीं है कि हमको जो आज टुकड़ा मिलता है वह उन महात्मा रत्नप्रभसूरि का ही प्रताप है।
खैर सूर्य के प्रकाश के लिये प्रमाण की जरुरत नहीं है क्योंकि छोटा से बड़ा आदमी सब सूर्य को जानते हैं। इसी प्रकार आचार्य रत्नप्रभसूरि के लिये भी आज प्रमाण की आवश्यकता नहीं है, कारण जैन समाज का बच्चा बच्चा भी जानता है कि आचार्य रत्नप्रभसूरि ने सबसे पहले उपकेशपुर में आचार पतित क्षत्रियों की शुद्धि कर 'महाजनसंघ' की स्थापना की थी और ओसवाल यह उस महाजनसंघ का रुपान्तर नाम है और इस विषय के अनेक ग्रन्थ भी निर्माण हो चुके हैं।
खर-तर दूसरों की बातें करतें है पर अभी उनको अपने घर की बातों का पता तक भी नहीं है, अतः आज मैं कुछ खर-तरों के घर की बातें पाठकों की सेवा में उपस्थित करता हूँ, यदि खरतर भाई इन बातों को ठीक तौर पर पढ़ के विचार करेंगे तो इतने से ही शांति आ जायेगी। वरन इन बातों पर टीका भाष्य
चूर्णि आदि विवरण रच कर समझाया जायेगा। खर-तरों यह तो अभी आपके लिये मंगलाचरण ही हुआ है।
खर-तरों को एक बात और भी ध्यान में रखनी चाहिये और वह यह है कि हम कँवला हैं और तुम हो करड़ा-कठोर, अतः करड़ा की जमा कँवला क्षण भर भी नहीं रख सकते है। यहा तो साफ सौदा है कि इस हाथ दें और उस हाथ लें। अतः आप पहले घर को संभाल लेना इत्यालम् ।
"लेखक"