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७. आचार्य धर्माचार्य १६ आचार्य रक्षित । २५ आचार्य गोविन्द ८ आचार्य गुप्त
१७ आचार्य दुर्बलि का पुष्प | २६ आचार्य संभूतिदीन ९ आचार्य समुद्र
१८ आचार्य नन्दी २७ आचार्य लोकहित १० आचार्य मंगु १९ आचार्य नागहस्ती २८ आचार्य दुष्यगणि ११ आचार्य सुधर्म २० आचार्य रेवती २९ आचार्य उमास्वाति १२ आचार्य हरिबल २१ आचार्य ब्रह्मद्वीपि ३० आचार्य जिनभद्र १३ आचार्य भद्रगुप्त २२ आचार्य संडिल ३१ आचार्य हरिभद्र १४ आचार्य सिंहगिरि २३ आचार्य हेमवन्त ३२ आचार्य देवाचार्य १५ आचार्य वज्र २४ आचार्य नागार्जुन ३३ आचार्य नेमिचन्द्रसूरि
३४ आचार्य उद्योतनसूरि
ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, पृष्ठ २१८ यह पट्टावली शांतिसूरि शाखा की है न कि चान्द्रकुल की। एक दूसरी शान्तिसूरि की पट्टावली है जिसमें भी नामक्रम नहीं मिलते हैं। ऊपर की पट्टावली के नम्बर ११ तक ठीक हैं परन्तु वहां से आगे के नाम ठीक नहीं मिलते हैं। देखिये नं. १२-१३-१४ के आचार्य ऊपर की पट्टावली में हैं तब दूसरी पट्टावली में पूर्वोक्त नाम नहीं हैं। इसी प्रकार शान्तिसूरि की शाखा की जितनी पट्टावलियां खरतरों ने लिखी हैं वे सब इस प्रकार गड़बड़ वाली हैं।
दूसरे कई खरतरों ने चान्द्रकुल शाखा के नामों से भी पट्टावलियां लिखी हैं। उसमें भी नामों की बड़ी गड़बड़ है कि जैसे शान्तिसूरि की शाखा के नामों की पट्टावलियों में है। इससे स्पष्ट पाया जाता है कि खरतर मत एक समुत्सम पैदा हुआ मत है और इसका अस्तित्व जिनवल्लभसूरि के पूर्व कहीं भी नहीं मिलता है, जैसे बिना बाप के पुत्र से उसके पिता का नाम पूछो तो वह जी चाहे उसका ही नाम बतला सकता है, यही हाल खरतरों का है। खरतरों की पट्टावलियों के विषय में मैं एक स्वतन्त्र पुस्तक लिखकर थोड़े ही समय में आपकी सेवा में उपस्थित कर दूंगा। पाठक थोड़े समय के लिये धैर्य रखें।
खरतरमतोत्पत्ति विषय एक और भी प्रमाण पं. हीरालाल हंसराज जामनगर वालों ने अपने "जैनधर्म नो प्राचीन इतिहास भाग बीजो" नामक ग्रन्थ के पृष्ठ १८ पर महोपाध्याय धर्मसागरजी महाराज की 'प्रवचन परीक्षा' का प्रमाण देते हुए गुजराती में खरतर-गच्छ के विषय में जो कुछ