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आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र -२, 'अनुयोगद्वार'
उसका जो प्रदेश वही प्रदेश धर्मास्तिकाय है। इसी प्रकार अधर्म और उसका जो प्रदेश वही प्रदेश अधर्मास्तिकाय रूप है, यावत् स्कन्ध और उसका जो प्रदेश है, वही प्रदेश नोस्कन्धात्मक है। ऐसा कथन करने पर समभिरूढनय से एवंभूतनय ने कहा- जो कुछ भी तुम कहते हो वह समीचीन नहीं, मेरे मत से वे सब कृत्स्न हैं, प्रतिपूर्ण और निरवशेष हैं, एक ग्रहणगृहीत हैं- अतः देश भी अवस्तु रूप है एवं प्रदेश भी अवस्तु रूप हैं।
सूत्र - ३११
संख्याप्रमाण क्या है ? आठ प्रकार का है । यथा-नामसंख्या, स्थापनासंख्या, द्रव्यसंख्या, औपम्यसंख्या, परिमाण संख्या, ज्ञानसंख्या, गणनासंख्या, भावसंख्या नामसंख्या क्या है ? जिस जीव का अथवा अजीव का अथवा जीवों का अथवा अजीवों का अथवा तदुभव का अथवा तदुभयों का संख्या ऐसा नामकरण कर लिया जाता है, उसे नामसंख्या कहते हैं । जिस काष्ठकर्म में, पुस्तकर्म में या चित्रकर्म में या लेप्यकर्म में अथवा ग्रन्थिकर्म में अथवा वेढित में अथवा पूरित में अथवा संघातिम में अथवा अक्ष में अथवा वराटक में अथवा एक या अनेक में सद्भूतस्थापना या असद्द्भूतस्थापना द्वारा संख्या इस प्रकार का स्थापन कर लिया जाता है, वह स्थापनासंख्या है। नाम और स्थापना में क्या अन्तर है ? नाम यावत्कथित होता है लेकिन स्थापना इत्वरिक भी होती है और यावत्कथिक भी होती है।
द्रव्यशंख का क्या तात्पर्य है ? दो प्रकार का आगमद्रव्यशंख, नोआगमद्रव्यशंख । आगमद्रव्यशंख (संख्या) का स्वरूप इस प्रकार है- जिसने शंख (संख्या) यह पद सीखा लिया, हृदय में स्थिर किया, जित किया, मित किया, अधिकृत कर लिया यावत् निर्दोष स्पष्ट स्वर से शुद्ध उच्चारण किया तथा गुरु से वाचना ली, जिससे वाचना, पृच्छना, परावर्तना एवं धर्मकथा से युक्त भी हो गया परन्तु जो अर्थ का अनुचिन्तन करने रूप अनुप्रेक्षा से रहित हो, उपयोग न होने से वह आगम से द्रव्यशंख (संख्या) कहलाता है। क्योंकि सिद्धान्त में ' अनुपयोगो द्रव्यम् - उपयोग से 'शून्य को द्रव्य कहा है ।
( नैगमनय की अपेक्षा) एक अनुपयुक्त आत्मा एक आगमद्रव्यशंख, दो अनुपयुक्त आत्मा दो आगमद्रव्यशंख, तीन अनुपयुक्त आत्मा तीन आगमद्रव्यशंख हैं। इस प्रकार जितनी अनुपयुक्त आत्माएँ हैं उतने ही द्रव्यशंख हैं । व्यवहारनय नैगमनय के समान ही मानता है । संग्रहनय एक अनुपयुक्त आत्मा एक द्रव्यशंख और अनेक अनुपयुक्त आत्माएँ अनेक आगमद्रव्यशंख, ऐसा स्वीकार नहीं करता किन्तु सभी को एक ही आगमद्रव्यशंख मानता है । ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा एक आगमद्रव्यशंख है । तीनों शब्द नय अनुपयुक्त ज्ञायक को अवस्तु मानते हैं । क्योंकि यदि ज्ञायक है तो अनुपयुक्त नहीं होता है और यदि अनुपयुक्त हो तो वह ज्ञायक नहीं होता है । इसलिए आगमद्रव्यशंख संभव नहीं है ।
नोआगमद्रव्यसंख्या क्या है ? तीन भेद हैं-ज्ञायकशरीरद्रव्यसंख्या, भव्यशरीरद्रव्यसंख्या, ज्ञायकशरीरभव्यशरीर-व्यतिरिक्तद्रव्यसंख्या । संख्या इस पद के अर्थाधिकार के ज्ञाता का वह शरीर, जो व्यपगत हो गया हो, त्यक्त देह यावत् जीवरहित शरीर को देखकर कहना अहो! इस शरीर रूप पुद्गलसंघात ने संख्या पद को ग्रहण किया था, पढ़ा था यावत् उपदर्शित किया था-समझाया था, उसका वह ज्ञायकशरीर द्रव्यसंख्या है।) इसका कोई दृष्टान्त है ? हाँ, है । यह घी का घड़ा है । यह ज्ञायकशरीरद्रव्यसंख्या का स्वरूप है। जन्म समय प्राप्त होने पर जो जीव योनि से बाहर निकला और भविष्य में उसी शरीरपिंड द्वारा जिनोपदिष्ट भावानुसार संख्या पद को सीखेगा ऐसे उस जीव का वह शरीर भव्यशरीरद्रव्यसंख्या है । इसका कोई दृष्टान्त है ? यह घृतकुंभ होगा । यह भव्यशरीरद्रव्यसंख्या का स्वरूप है ज्ञायकशरीर भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्यशंख के तीन प्रकार हैं- एकभविक, बद्धायुष्क और अभिमुखनामगोत्र ।
एकभविक जीव एकभविक ऐसा नाम वाला कितने समय तक रहता है ? जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट एक पूर्व कोटि पर्यन्त रहता है । बद्धायुष्क जीव बद्धायुष्क रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट एक पूर्वकोटि वर्ष के तीसरे भाग तक रहता है। अभिमुखनामगोत्र (शंख) का अभिमुखनामगोत्र नाम कितने काल तक रहता है ?
दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद"
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