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________________ आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' शरीरावगाहना से असंख्यात गुणे हों । उन बालाग्रखण्डों को न तो अग्नि जला सके और न वायु उड़ा सके, वे न तो सड़-गल सके और न जल से भीग सके, उनमें दुर्गन्ध भी उत्पन्न न हो सके । उस पल्य के बालागों से जो आकाशप्रदेश स्पृष्ट हुए हों और स्पृष्ट न हुए हों उनमें से प्रति समय एक-एक आकाशप्रदेश का अपहरण किया जाए तो जितने काल में वह पल्य क्षीण, नीरज, निर्लेप एवं सर्वात्मना विशुद्ध हो जाए, उसे सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम हैं। भगवन् ! क्या उस पल्य के ऐसे भी आकाशप्रदेश हैं जो उन बालाग्रखण्डों से अस्पृष्ट हों ? आयुष्मन् ! हाँ, हैं । इस विषय में कोई दृष्टांत है ? हाँ है । जैसे कोई एक कोष्ठ कूष्मांड के फलों से भरा हुआ हो और उसमें बिजौराफल डाले गए तो वे भी उसमें समा गए । फिर उसमें बिल्वफल डाले तो वे भी समा जाते हैं । इसी प्रकार उसमें आँवला डालें जाएँ तो वे भी समा जाते हैं । फिर वहाँ बेर डाले जाएँ तो वे भी समा जाते हैं । फिर चने डालें तो वे भी उसमें समा जाते हैं । फिर मूंग के दाने डाले जाएँ तो वे भी उसमें समा जाते हैं । फिर सरसों डाले जाएँ तो वे भी समा जाते हैं । इसके बाद गंगा महानदी की बालू डाली जाए तो वह भी उसमें समा जाती है । इस दृष्टान्त से उस पल्य के ऐसे भी आकाशप्रदेश होते हैं जो उन बालाग्रखण्डों से अस्पृष्ट रह जाते हैं। सूत्र-२९६ इन पल्यों को दस कोटाकोटि से गुणा करने पर एक सूक्ष्म क्षेत्रसागरोपम का परिमाण होता है। सूत्र - २९७ इन सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम और सागरोपम का क्या प्रयोजन है ? इनसे दृष्टिवाद में वर्णित द्रव्यों का मान किया जाता है। सूत्र-२९८ द्रव्य कितने प्रकार के हैं ? दो प्रकार के-जीवद्रव्य और अजीवद्रव्य । अजीवद्रव्य दो प्रकार के हैं-अरूपी अजीवद्रव्य और रूपी अजीवद्रव्य । अरूपी अजीवद्रव्य दस प्रकार के हैं-धर्मास्तिकाय, धर्मास्तिकाय के देश, धर्मास्तिकाय के प्रदेश, अधर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकायदेश, अधर्मास्तिकायप्रदेश, आकाशास्तिकाय, आकाशास्ति-कायदेश, आकाशास्तिकायप्रदेश और अद्धासमय । भगवन् ! रूपी अजीवद्रव्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! चार प्रकार के, स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्धप्रदेश और परमाणु। भगवन् ! ये स्कन्ध आदि संख्यात हैं, असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं ? गौतम ! ये स्कन्ध आदि अनन्त ही हैं । क्योंकि गौतम ! परमाणु पुद्गल अनन्त हैं, द्विप्रदेशिकस्कन्ध अनन्त हैं यावत् अनन्तप्रदेशिकस्कन्ध अनन्त हैं। भगवन् ! क्या जीवद्रव्य संख्यात हैं, असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं ? गौतम ! जीवद्रव्य अनन्त ही हैं। क्योंकि-असंख्यात नारक हैं, असंख्यात असुरकुमार यावत् असंख्यात स्तनितकुमार देव हैं, असंख्यात पृथ्वीकायिक यावत् असंख्यात वायुकायिक जीव हैं, अनन्त वनस्पतिकायिक जीव हैं, असंख्यात द्वीन्द्रिय यावत् असंख्यात चतुरिन्द्रिय, असंख्यात पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीव हैं, असंख्यात मनुष्य हैं, असंख्यात वाणव्यंतर देव हैं, असंख्यात ज्योतिष्क देव हैं, असंख्यात वैमानिक देव हैं और अनन्त सिद्ध जीव हैं। सूत्र - २९९ भगवन् ! शरीर कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार -औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, कार्मण । नैरयिकों के तीन शरीर हैं। -वैक्रिय, तैजस और कार्मण शरीर । असुरकुमारों के तीन शरीर हैं । वैक्रिय, तैजस और कार्मण । इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त जानना । पृथ्वीकायिक जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन, -औदारिक, तैजस और कार्मण । इसी प्रकार अप्कायिक, तेजस्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों को भी जानना । वायुकायिक जीवों के चार शरीर हैंऔदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण शरीर । पृथ्वीकायिक जीवों के समान द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के भी जानना। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद' Page 50
SR No.034714
Book TitleAgam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 45, & agam_anuyogdwar
File Size3 MB
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