________________
आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' हो जाए, उतने काल को व्यावहारिक उद्धारपल्योपम कहते हैं। सूत्र - २८५
दस कोटाकोटि व्यावहारिक अद्धापल्योपमों का एक व्यावहारिक सागरोपम होता है। सूत्र- २८६
व्यावहारिक अद्धा पल्योपम और सागरोपम से किस प्रयोजन की सिद्धि होती है ? कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता है। ये केवल प्ररूपणा के लिये हैं । सूक्ष्म अद्धापल्योपम का स्वरूप इस प्रकार है-एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा, एक योजन ऊंचा एवं साधिक तीन योजन की परिधिवाला एक पल्य हो । उस पल्य को एक-दोतीन दिन के यावत् बालाग्र कोटियों से पूरी तरह भर दिया जाए | फिर उनमें से एक-एक बालाग्र के ऐसे असंख्यात-असंख्यात खण्ड किये जाएँ कि वे खण्ड दृष्टि के विषयभूत होने वाले पदार्थों की अपेक्षा असंख्यात भाग हों और सूक्ष्म पनक जीव की शरीरावगाहना से असंख्यात गुणे अधिक हों। उन खण्डों में से सौ-सौ वर्ष के पश्चात् एक-एक खण्ड को अपहृत करने-निकालने पर जितने समय में वह पल्य बालाग्र-खण्डों से विहीन, नीरज, संश्लेषरहित और संपूर्ण रूप से निष्ठित-खाली हो जाए, उतने काल को सूक्ष्म अद्धापल्योपम कहते हैं। सूत्र-२८७
इस अद्धापल्योपम को दस कोटाकोटि से गुणा करने से अर्थात् दस कोटाकोटि सूक्ष्म अद्धापल्योपमों का एक सूक्ष्म अद्धासागरोपम होता है। सूत्र - २८८
सूक्ष्म अद्धापल्योपम और सूक्ष्म अद्धासागरोपम से किस प्रयोजन की सिद्धि होती है ? इस से नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देवों के आयुष्य का प्रमाण जाना जाता है। सूत्र - २८९
नैरयिक जीवों की स्थिति कितने काल की है ? गोतम ! सामान्य रूप में जघन्य १०००० वर्ष की और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम की है । रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक सागरोपम की होती है । रत्नप्रभा पृथ्वी के अपर्याप्तक नारकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहुर्त की होती है । रत्नप्रभा पृथ्वी के पर्याप्तक नारकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त न्यून १०००० वर्ष और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त न्यून एक सागरोपम की होती है । शर्कराप्रभा पृथ्वी के नारकों की स्थिति जघन्य एक सागरोपम और उत्कृष्ट तीन सागरोपम हैं । बालुकाप्रभा के नैरयिकों की जघन्य स्थिति तीन सागरोपम की और उत्कृष्ट सात सागरोपम, पंकप्रभा के नारकों की जघन्य सात सागरोपम और उत्कृष्ट दस सागरोपम, धूमप्रभा के नारकों की जघन्य दस सागरोपम और उत्कृष्ट सत्रह सागरोपम, तमःप्रभा के नारकों की जघन्य सत्रह सागरोपम और उत्कृष्ट बाईस सागरोपम और तमस्तमःप्रभा के नैरयिकों की जघन्य स्थिति बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट स्थिति तेंतीस सागरोपम हैं।
असुरकुमार देवों की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य १०००० वर्ष और उत्कृष्ट कुछ अधिक एक सागरोपम प्रमाण है । असुरकुमार देवियों की स्थिति जघन्य १०००० वर्ष और उत्कृष्ट साढ़े चार पल्योपम की है । नागकुमार देवों की स्थिति जघन्य १०००० वर्ष और उत्कृष्ट देशोन दो पल्योपम है । नागकुमारदेवियों की स्थिति जघन्य १०००० वर्ष और उत्कृष्ट देशोन एक पल्योपम की है एवं जितनी नागकुमार देव, देवियों की स्थिति है, उतनी ही शेष देवों और देवियों की स्थिति जानना ।।
पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट २२००० वर्ष है । सामान्य सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों की तथा सूक्ष्म पृथ्वीकायिक अपर्याप्त और पर्याप्तों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । बादर पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट २२००० वर्ष अपर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहर्त की होती है तथा पर्याप्त बादर मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
Page 45