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________________ आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' है । तो क्या वह उसमें प्रतिस्खलना प्राप्त करता है ? यह अर्थ समर्थ नहीं है । क्या वह व्यावहारिक परमाणु उदकावर्त और जलबिन्दु में अवगाहन कर सकता है ? हाँ, कर सकता है । तो क्या वह सड़ जाता है ? यह यथार्थ नहीं है। सूत्र-२६७ अत्यन्त तीक्ष्ण शस्त्र से भी कोई जिसका छेदन-भेदन करने में समर्थ नहीं है, उसको ज्ञानसिद्ध केवली भगवान् परमाणु कहते हैं । वह सर्व प्रमाणों का आदि प्रमाण है।। उस अनन्तान्त व्यावहारिक परमाणुओं के समुदयसमितिसमागम से एक उत्श्र्लक्ष्णलक्षिणका, लक्ष्णलक्ष्णिका, ऊर्ध्व-रेणु, त्रसरेणु और रथरेणु उत्पन्न होता है | आठ उत्श्र्लक्ष्णलक्ष्णिका की एक लक्ष्णलक्ष्णिका होती है । आठ लक्ष्णलक्ष्णिका का एक ऊर्ध्वरेणु । आठ ऊर्ध्वरेणुओं का एक त्रसरेणु, आठ त्रसरेणुओं का एक रथरेणु, आठ रथरेणुओं का एक देवकुरु-उत्तरकुरु के मनुष्यों का बालाग्र, आठ देवकुरुउत्तरकुरु के मनुष्यों के बालारों का एक हरिवर्ष-रम्यक्वर्ष के मनुष्यों का बालाग्र होता है । आठ हरिवर्ष-रम्यक्वर्ष के मनुष्यों के बालानों के बराबर हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्र के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है । हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्र के मनुष्यों के आठ बालानों के बराबर पूर्व महाविदेह और अपर महाविदेह के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है । आठ पूर्वविदेह-अपरविदेह के मनुष्यों के बालानों के बराबर भरत-एरावत क्षेत्र के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है । भरत और एरावत क्षेत्र के मनुष्यों के आठ बालानों की एक लिक्षा होती है । आठ लिक्षाओं की एक नँ, आठ जुओं का एक यवमध्य और आठ यवमध्यों का एक उत्सेधांगुल होता है । इस अंगुलप्रमाण से छह अंगुल का एक पाद होता है । बारह अंगुल की एक वितस्ति, चौबीस अंगुल की एक रत्लि, अड़तालीस अंगुल की एक कुक्षि और छियानवै अंगुल का एक दंड, धनुष, युग, नालिका, अक्ष अथवा मूसल होता है । इस धनुषप्रमाण से दो हजार धनुष का एक गव्यूत और चार गव्यूत का एक योजन होता है । इस उत्सेधांगुल से क्या प्रयोजन है ? इस से नारकों, तिर्यंचों, मनुष्यों और देवों के शरीर की अवगाहना मापी जाती है। नारकों के शरीर की कितनी अवगाहना है ? गौतम ! दो प्रकार से है-भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । उनमें से भवधारणीय की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण और उत्कृष्ट पाँच सौ धनुषप्रमाण है । उत्तरवैक्रिय शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग एवं उत्कृष्ट १००० धनुषप्रमाण है । रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकों की शरीरावगाहना दो प्रकार की है-भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । भवधारणीय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट सात धनुष, तीन रत्नि तथा छह अंगुलप्रमाण है । उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भागप्रमाण और उत्कृष्ट पन्द्रह धनुष, अढ़ाई रत्नि है। शर्कराप्रभा पृथ्वी के नारकों की शरीरावगाहना कितनी है ? गौतम ! उनकी अवगाहना दो प्रकार से है। भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । भवधारणीय अवगाहना तो जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट पन्द्रह धनुष दो रत्नि और बारह अंगुल प्रमाण है । उत्तरवैक्रिय अवगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट इकतीस धनुष और एक रत्नि है । बालुकाप्रभा पृथ्वी के नारकों की शरीरावगाहना दो प्रकार से हैं । भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । भवधारणीय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट इकतीस धनुष तथा एक रत्नि प्रमाण है । उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ठ बासठ धनुष और दो रत्नि प्रमाण है। पंकप्रभा पृथ्वी में भवधारणीय जघन्य अवगाहना अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट बासठ धनुष और दो रत्नि प्रमाण है । उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग एवं उत्कृष्ट एक सौ पच्चीस धनुष प्रमाण है । धूमप्रभा-पृथ्वी में भवधारणीय जघन्य (शरीरावगाहना) अंगुल के असंख्यातवें भाग तथा उत्कृष्ट एक सौ पच्चीस धनुष प्रमाण है । उत्तर-वैक्रिया शरीरावगाहना जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट ढाई सौ धनुष प्रमाण है । तमःप्रभा पृथ्वी में भवधारणीय शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद' Page 39
SR No.034714
Book TitleAgam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 45, & agam_anuyogdwar
File Size3 MB
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