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________________ आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' है ? गीत के कितने आकार होते हैं ? सातों स्वर नाभि से उत्पन्न होते हैं । रुदन गीत की योनि है । पादसम-उतना उसका उच्छ्वास-काल होता है । गीत के तीन आकार होते हैं-आदि में मृदु, मध्य में तीव्र और अंत मे मंद । इस प्रकार से गीत के तीन आकार जानना । सूत्र-१९३ संगीत के छह दोषों, आठ गुणों, तीन वृत्तों और दो भणितियों को यथावत् जाननेवाला सुशिक्षित-व्यक्ति रंगमंच पर गायेगा। सूत्र - १९४ गीत के छह दोष हैं-भीतदोष, द्रुतदोष, उत्पिच्छदोष, उत्तालदोष, काकस्वरदोष और अनुनासदोष । सूत्र - १९५ गीत के आठ गुण हैं-पूर्णगुण, रक्तगुण, अलंकृतगुण, व्यक्तगुण, अविघुष्टगुण, मधुरगुण, समगुण, सुललितगुण । सूत्र - १९६ गीत के आठ गुण और भी हैं, उरोविशुद्ध, कंठविशुद्ध, शिरोविशुद्ध, मृदुक, रिभित, पदबद्ध, समतालप्रत्युत्क्षेप और सप्तस्वरसीभरसूत्र-१९७ (प्रकारान्तर से) सप्तस्वरसीभर की व्याख्या इस प्रकार है-अक्षरसम, पदसम, तालसम, लयसम, ग्रहसम, निश्वसितो-च्छ्वसितसम और संचारसम- इस प्रकार गीत स्वर, तंत्री आदि के साथ सम्बन्धित होकर सात प्रकार का हो जाता है। सूत्र-१९८ गेय पदों के आठ गुण हैं-निर्दोष, सारवंत, हेतुयुक्त, अलंकृत, उपनीत, सोपचार, मित और मधुर । सूत्र - १९९ गीत के वृत्त-छन्द तीन प्रकार के हैं-सम, अर्धसम और सर्वविषम । इनके अतिरिक्त चौथा प्रकार नहीं है। सूत्र - २०० भणतियाँ दो प्रकार की हैं-संस्कृत और प्राकृत । ये दोनों प्रशस्त एवं ऋषिभाषित हैं और स्वरमंडल में पाई जाती है। सूत्र - २०१-२०२ कौन स्त्री मधुर स्वर में गीत गाती है ? पुरुष और रूक्ष स्वर में कौन गाती है ? चतुराई से कौन गाती है ? विलंबित स्वर में कौन गाती है ? द्रत स्वर में कौन गाती है ? तथा विकत स्वर में कौन गाती है ? श्यामा स्त्री मधुर स्वर में गीत गाती है, कृष्णवर्णा स्त्री खर और रूक्ष स्वर में, गौरवर्णा स्त्री चतुराई से, कानी स्त्री विलंबित स्वर में, अंधी स्त्री शीघ्रता से और पिंगला विकृत स्वर में गीत गाती हैं। सूत्र-२०३-२०४ ___ इस प्रकार सात स्वर, तीन ग्राम और इक्कीस मूर्च्छनायें होती हैं । प्रत्येक स्वर सात तानों से गाया जाता है, इसलिये उनके उनपचास भेद हो जाते हैं । इस प्रकार स्वरमंडल का वर्णन समाप्त हुआ। सूत्र- २०५-२०७ अष्टनाम क्या है ? आठ प्रकार की वचनविभक्तियों अष्टनाम हैं । वचनविभक्ति के वे आठ प्रकार यह हैंनिर्देश अर्थ में प्रथमा, उपदेशक्रिया के प्रतिपादन में द्वितीया, क्रिया के प्रति साधकतम कारण में तृतीया, संप्रदान में चतुर्थी, अपादान में पंचमी, स्व-स्वामित्वप्रतिपादन में षष्ठी, सन्निधान में सप्तमी और संबोधित अर्थ में अष्टमी मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 31
SR No.034714
Book TitleAgam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 45, & agam_anuyogdwar
File Size3 MB
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