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________________ आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' पर्यन्त व्युत्क्रम से उपन्यास करना अधोलोकपश्चानुपूर्वी है । अधोलोकक्षेत्रअनानुपूर्वी क्या है ? आदि में एक स्थापित कर सात पर्यन्त एकोत्तर वृद्धि द्वारा निर्मित श्रेणी में परस्पर गुणा करने से निष्पन्न राशि में से प्रथम और अन्तिम दो भंगों को कम करने पर यह अनानुपूर्वी बनती है। तिर्यग् लोकक्षेत्रानुपूर्वी के तीन भेद हैं । पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी । मध्यलोकक्षेत्रपूर्वानुपूर्वी क्या है ? वह इस प्रकार हैसूत्र - १२१-१२४ जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, धातकीखंडद्वीप, कालोदधिसमुद्र, पुष्करद्वीप, (पुष्करोद) समुद्र, वरुणद्वीप, वरुणोदसमुद्र, क्षीरद्वीप, क्षीरोदसमुद्र, घृतद्वीप, घृतोदसमुद्र, इक्षुवरद्वीप, इक्षुवरसमुद्र, नन्दीद्वीप, नन्दीसमुद्र, अरुणवरद्वीप, अरुणवरसमुद्र, कुण्डलद्वीप, कुण्डलसमुद्र, रुचकद्वीप, रुचकसमुद्र। जम्बूद्वीप से लेकर ये सभी द्वीप-समुद्र बिना किसी अन्तर के एक दूसरे को घेरे हुए स्थित हैं । इनके आगे असंख्यात-असंख्यात द्वीप-समुद्रों के अनन्तर भुजगवर तथा इसके अनन्तर असंख्यात द्वीप-समुद्रों के पश्चात् कुशवरद्वीप समुद्र है और इसके बाद भी असंख्यात द्वीप-समुद्रों के पश्चात् क्रौंचवर द्वीप है। पुनः असंख्यात द्वीपसमुद्रों के पश्चात् आभरणों आदि के सदृश शुभ नामवाले द्वीपसमुद्र हैं । यथाआभरण, वस्त्र, गंध, उत्पल, तिलक, पद्म, निधि, रत्न, वर्षधर, ह्रद, नदी, विजय, वक्षस्कार, कल्पेन्द्र । कुरु, मंदर, आवास, कूट, नक्षत्र, चन्द्र, सूर्यदेव, नाग, यक्ष, भूत आदि के पर्यायवाचक नामों वाले द्वीप-समुद्र असंख्यात हैं और अन्त में स्वयंभूरमणद्वीप एवं स्वयंभूरमणसमुद्र है । यह तीर्थोलोक क्षेत्रानुपूर्वी हुई। सूत्र - १२५ मध्यलोकक्षेत्रपश्चानुपूर्वी क्या है ? स्वयंभूरमणसमुद्र, भूतद्वीप आदि से लेकर जम्बूद्वीप पर्यन्त व्युत्क्रम से द्वीप-समुद्रों के उपन्यास करना मध्यलोकक्षेत्रपश्चानुपूर्वी हैं । मध्यलोकक्षेत्रअनानुपूर्वी क्या है ? वह इस प्रकार हैएक से प्रारम्भ कर असंख्यात पर्यन्त की श्रेणी स्थापित कर उनका परस्पर गुणाकार करने पर निष्पन्न राशि में से आद्य और अन्तिम इन दो भंगों को छोड़कर मध्य के समस्त भंग मध्यलोकक्षेत्रअनानुपूर्वी हैं। ऊर्ध्वलोकक्षेत्रानुपूर्वी तीन प्रकार की है । पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी । ऊर्ध्वलोकक्षेत्रविषयक पूर्वानुपूर्वी क्या है? सौधर्म, ईशान, सनतकुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, अच्युत, ग्रैवेयकविमान, अनुत्तरविमान, ईषत्प्राग्भारापृथ्वी, इस क्रम से ऊर्ध्वलोक के क्षेत्रों का उपन्यास करना ऊर्ध्वलोकक्षेत्रपूर्वानुपूर्वी हैं । ऊर्ध्वलोक-क्षेत्रपश्चानुपूर्वी क्या है ? ईषत्प्राग्भाराभूमि से सौधर्म कल्प तक के क्षेत्रों का व्युत्क्रम से उपन्यास करना ऊर्ध्वलोकक्षेत्रपश्चानुपूर्वी हैं । ऊर्ध्वलोकक्षेत्रअनानुपूर्वी किसे कहते हैं ? आदि में एक रखकर एकोत्तरवृद्धि द्वारा निर्मित पन्द्रह पर्यन्त की श्रेणी में परस्पर गुणा करने पर प्राप्त राशि में से आदि और अंत के दो भंगों को कम करने पर शेष भंगों को ऊर्ध्वलोकक्षेत्रअनानुपूर्वी कहते हैं। अथवा औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी तीन प्रकार की है । पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी । औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्व सम्बन्धी पूर्वानुपूर्वी क्या है ? एकप्रदेशावगाढ, द्विप्रदेशावगाढ यावत् दसप्रदेशावगाढ यावत् असंख्यातप्रदेशावगाढ के क्रम से क्षेत्र के उपन्यास को पूर्वानुपूर्वी कहते हैं | पश्चानुपूर्वी क्या है ? असंख्यात प्रदेशावगाढ यावत् एकप्रदेशावगाढ रूप में व्युत्क्रम से क्षेत्र का उपन्यास पश्चानुपूर्वी है । अनानुपूर्वी क्या है ? एक से प्रारम्भ कर एकोत्तर वृद्धि द्वारा असंख्यात प्रदेश पर्यन्त की स्थापित श्रेणी का परस्पर गुणा करने से निष्पन्न राशि में से आद्य और अंतिम इन दो रूपों को कम करने पर क्षेत्रविषयक अनानुपूर्वी बनती है। सूत्र-१२६-१२७ कालानुपूर्वी क्या है ? दो प्रकार हैं, औपनिधिकी और अनौपनिधिकी । इनमें से औपनिधिकी कालानुपूर्वी स्थाप्य है । तथा-अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी दो प्रकार की है-नैगम-व्यवहारनयसंमत और संग्रहनयसम्मत । मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद' Page 20
SR No.034714
Book TitleAgam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 45, & agam_anuyogdwar
File Size3 MB
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