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________________ आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' इसी प्रकार दोनों द्रव्यों के लिये भी जानना । संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य लोक के कितने भाग में है ? क्या संख्यात भाग में हैं ? असंख्यात भाग में है ? संख्यात भागों में हैं ? असंख्यात भागों में हैं ? अथवा सर्वलोक में हैं ? वह नियमतः सर्वलोक में हैं । इसी प्रकार का कथन दोनों द्रव्यों के लिए भी समझना । संग्रहनयसंमत आनुपूर्वीद्रव्य क्या लोक के संख्यात भाग का, असंख्यात भाग का, संख्यात भागों या असंख्यात भागों या सर्वलोक का स्पर्श करते हैं ? आनुपूर्वीद्रव्य नियम से सर्वलोक का स्पर्श करते हैं । इसी प्रकार का कथन दोनों द्रव्यों के लिए भी समझना । संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य काल की अपेक्षा कितने काल तक रहते हैं ? वह सर्वकाल रहते हैं । इसी प्रकार का कथन शेष दोनों द्रव्यों के लिए भी समझना । संग्रहनयसंमत आनुपूर्वीद्रव्यों का कालापेक्षया कितना विरहकाल होता है ? कालापेक्षया आनुपूर्वीद्रव्यों में अंतर नहीं होता है । इसी प्रकार शेष दोनों द्रव्यों के लिए समझना । संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य शेष द्रव्यों के कितनेवें भाग प्रमाण होते हैं ? क्या संख्यात भाग प्रमाण होते हैं या असंख्यात भाग प्रमाण होते हैं ? संख्यात भागों प्रमाण अथवा असंख्यात भागों प्रमाण होते हैं ? वह शेष द्रव्यों के नियमतः तीसरे भाग प्रमाण होते हैं । इसी प्रकार दोनों द्रव्यों में भी समझना | संग्रहनयसंमत आनुपूर्वीद्रव्य किस भाव में होते हैं ? आनुपूर्वीद्रव्य नियम से सादिपारिणामिक भाव में होते हैं । यही कथन शेष दोनों द्रव्यों के लिए भी समझना | राशिगत द्रव्यों में अल्पबहुत्व नहीं है । यह अनुगम का वर्णन है। सूत्र - १०९ औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी क्या है ? उसके तीन प्रकार कहे हैं, पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी । सूत्र-११० __ भगवन् ! पूर्वानुपूर्वी क्या है ? वह इस प्रकार है-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, अद्धाकाल । इस प्रकार अनुक्रम से निक्षेप करने को पूर्वानुपूर्वी कहते हैं । पश्चानुपूर्वी क्या है ? वह इस प्रकार है-अद्धासमय, पुद्गलास्तिकाय, जीवास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और धर्मास्तिकाय । इस प्रकार के विलोमक्रम से निक्षेपण करना पश्चानुपूर्वी है । अनानुपूर्वी क्या है? एक से प्रारंभ कर एक-एक की वृद्धि करने पर छह पर्यन्त स्थापित श्रेणी के अंको में परस्पर गुणाकार करने से जो राशि आये, उसमें से आदि और अंत के दो रूपों को कम करने पर अनानुपूर्वी बनती है। सूत्र - १११ अथवा औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी तीन प्रकार की है । पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी । पूर्वानुपूर्वी क्या है ? वह इस प्रकार है-परमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशिक स्कन्ध, त्रिप्रदेशिक स्कन्ध, यावत् दशप्रदेशिक स्कन्ध, संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध रूप क्रमात्मक आनुपूर्वी को पूर्वानुपूर्वी कहते हैं । पश्चानुपूर्वी क्या है ? अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध, असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध यावत् दशप्रदेशिक स्कन्ध यावत् त्रिप्रदेशिक स्कन्ध, द्विप्रदेशिक स्कन्ध, परमाणुपुद्गल । इस प्रकार का विपरीत क्रम से किया जाने वाला न्यास पश्चानुपूर्वी है । अनानुपूर्वी क्या है ? एक से प्रारंभ करके एक-एक की वृद्धि करने के द्वारा निर्मित अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध पर्यन्त की श्रेणी की संख्या को परस्पर गुणित करने से निष्पन्न अन्योन्याभ्यस्त राशि में से आदि और अंत रूप दो भंगों को कम करने पर अनानुपूर्वी बनती है। सूत्र-११२ क्षेत्रानुपूर्वी क्या है ? दो प्रकार की है। औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी और अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी । सूत्र-११३ इन दो भेदों में से औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी स्थाप्य है । अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी दो प्रकार की है। नैगमव्यवहारनय-संमत और संग्रहनयसंमत । मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद' Page 17
SR No.034714
Book TitleAgam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 45, & agam_anuyogdwar
File Size3 MB
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