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आगम सूत्र ४४, चूलिकासूत्र-१, 'नन्दीसूत्र' सूत्र - २८
अध्ययन-अध्यापन में रत, क्रियायुक्त, ध्याता, ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि का उद्योत करनेवाले तथा श्रुतरूप सागर के पारगामी धीर आर्य मंगु को वन्दन करता हूँ। सूत्र - २९
आर्य धर्म, भद्रगुप्त, तप नियमादि गुणों से सम्पन्न वज्रवत् सुदृढ आर्य वज्र को वन्दन करता हूँ। सूत्र-३०
जिन्होंने स्वयं के एवं अन्य सभी संयमियों के चारित्र सर्वस्व की रक्षा की तथा जिन्होंने रत्नों की पेटी के समान अनुयोग की रक्षा की, उन क्षपण-तपस्वीराज आर्यरक्षित को वन्दन करता हूँ। सूत्र - ३१
ज्ञान, दर्शन, तप और विनयादि गुणों में सर्वदा उद्यत तथा राग-द्वेष विहीन प्रसन्नमना, अनेक गुणों से सम्पन्न आर्य नन्दिल क्षपण को सिर नमाकर वन्दन करता हूँ। सूत्र-३२
व्याकरण निपुण, कर्मप्रकृति की प्ररूपणा करने में प्रधान, ऐसे आर्य नन्दिलक्षपण के पट्टधर शिष्य आर्य नागहस्ती का वाचक वंश मूर्तिमान् यशोवंश की तरह अभिवृद्धि को प्राप्त हो । सूत्र-३३
उत्तम जाति के अंजन धातु के सदृश प्रभावोत्पादक, परिपक्व द्राक्षा और नील कमल के समान कांतियुक्त आर्य रेवतिनक्षत्र क वाचक वंश वृद्धि प्राप्त करे । सूत्र-३४
जो अचलपुर में दीक्षित हुए और कालिक श्रुत की व्याख्या में से दक्ष तथा धीर थे, उत्तम वाचक पद को प्राप्त ऐसे ब्रह्मद्वीपिक शाखा के आर्य सिंह को वन्दन करता हूँ। सूत्र-३५
जिनका यह अनुयोग आज भी दक्षिणार्द्ध भरतक्षेत्र में प्रचलित है, तथा अनेकानेक नगरों में जिनका सुयश फैला हुआ है, उन स्कन्दिलाचार्य को मैं वन्दन करता हूँ। सूत्र-३६
हिमवंत के सदृश विस्तृत क्षेत्र में विचरण करनेवाले महान् विक्रमशाली, अनन्त धैर्यवान् और पराक्रमी, अनन्त स्वाध्याय के धारक आर्य हिमवान् को मस्तक नमाकर वन्दन करता हूँ। सूत्र - ३७
कालिक सूत्र सम्बन्धी अनुयोग और उत्पादन आदि पूर्वो के धारक, ऐसे हिमवन्त क्षमाश्रमण को और नागार्जुनाचार्य को वन्दन करता हूँ। सूत्र-३८
मृदु, मार्दव, आर्जव आदि भवों से सम्पन्न, क्रम से वाचक पद को प्राप्त तथा ओघश्रुत का समाचरण करने वाले नागार्जुन वाचक को वन्दन करता हूँ। सूत्र-३९-४१
तपे हुए स्वर्ण, चम्पक पुष्प या खिले हुए उत्तम जातीय कमल के गर्भ तुल्य गौर वर्णयुक्त, भव्यों के हृदयवल्लभ, जन-मानस में करुणा भाव उत्पन्न करने में निपुण, धैर्यगुण सम्पन्न, दक्षिणार्द्ध भरत में युग प्रधान, बहुविध स्वाध्याय के परिज्ञाता, संयमी पुरुषों को यथायोग्य स्वाध्याय में नियुक्तिकर्ता तथा नागेन्द्र कुल की परम्परा की
मुनि दीपरत्नसागर कृत्-(नन्दी) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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