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आगम सूत्र ४४, चूलिकासूत्र-१, 'नन्दीसूत्र'
[४४] नन्दीसूत्र चूलिका सूत्र-१- हिन्दी अनुवाद
सूत्र-१
संसार के तथा जीवोत्पत्तिस्थानों के ज्ञाता, जगद्गुरु, जीवों के लिए नन्दप्रदाता, प्राणियों के नाथ, विश्वबन्धु, लोक में पितामह स्वरूप अरिहन्त भगवान् सदा जयवन्त हैं। सूत्र -२
समग्र श्रुतज्ञान के मूलस्रोत, वर्तमान अवसर्पिणी काल के चौबीस तीर्थंकरों में अन्तिम, लोकों के गुरु महात्मा महावीर सदा जयवन्त हैं। सूत्र -३
विश्व में ज्ञान का उद्योत करनेवाले, राग-द्वेष रूप शत्रुओं के विजेता, देवों-दानवों द्वारा वन्दनीय, कर्म-रज से विमुक्त भगवान् महावीर का सदैव भद्र हो । सूत्र -४
गुणरूपी भवनों से व्याप्त, श्रुत रत्नों से पूरित, विशुद्ध सम्यक्त्व रूप वीथियों से युक्त, अतिचार रहित चारित्र के परकोटे से सुरक्षित, संघ-नगर ! तुम्हारा कल्याण हो । सूत्र-५
संयम जिसकी नाभि है, तप आरक हैं, तथा सम्यक्त्व जिस की परिधि है; ऐसे संघचक्र को नमस्कार हो, जो अतुलनीय है । उस संघचक्र की सदा जय हो । सूत्र-६
अठारह सहस्र शीलांग रूप पताका से युक्त, तप और संयम रूप अश्व जिसमें जुते हुए हैं, स्वाध्याय का मंगलमय मधुर घोष जिससे निकल रहा है, ऐसे भगवान् संघ-रथ का कल्याण हो। सूत्र-७-८
जो संघ रूपी पद्म, कर्म-रज तथा जल-राशि से ऊपर उठा हुआ है-जिस का धार श्रुतरत्नमय दीर्घ नाल है, पाँच महाव्रत जिसकी सुदृढ़ कर्णिकाएँ हैं, उत्तरगुण जिसका पराग है, जो भावुक जनरूपी मधुकरों से घिरा हुआ है, तीर्थंकर रूप सूर्य के केवलज्ञान रूप तेज से विकसित है, श्रमणगण रूप हजार पाँखूडी वाले उस संघपद्म का सदा कल्याण हो। सूत्र-९
हे तप प्रधान ! संयम रूप मृगचिह्नमय ! अक्रियावाद रूप राहु के मुख से सदैव दुर्द्धर्ष ! निरतिचार सम्यक्त्व चाँदनी से युक्त ! हे संघचन्द्र ! आप सदा जय प्राप्त करें।
सूत्र-१०
एकान्तवादी, दुर्नयी परवादी रूप ग्रहाभा को निस्तेज करनेवाले, तप तेज से सदैव देदीप्यमान, सम्यग्ज्ञान से उजागर, उपशम-प्रधान संघ रूप सूर्य का कल्याण हो ।
सूत्र-११
वृद्धिंगत आत्मिक परिणाम रूप बढ़ते हुए जल की वेला से परिव्याप्त है, जिसमें स्वाध्याय और शुभ योग रूप मगरमच्छ हैं, जो कर्मविदारण में महाशक्तिशाली है, निश्चल है तथा समस्त ऐश्वर्य से सम्पन्न एवं विस्तृत हैं, ऐसे संघ समुद्र का भद्र हो।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (नन्दी) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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