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________________ आगम सूत्र ४४, चूलिकासूत्र-१, 'नन्दीसूत्र' आभिनिबोधिक ज्ञान है वहाँ पर श्रुतज्ञान भी होता है । जहाँ श्रुतज्ञान है वहाँ आभिनिबोधिक ज्ञान भी होता है । ये दोनों ही अन्योन्य अनुगत हैं। जो सन्मुख आए पदार्थों को प्रमाणपूर्वक अभिगत करता है वह आभिनिबोधिक ज्ञान है, किन्तु जो सुना जाता है वह श्रुतज्ञान है । श्रुतज्ञान मतिपूर्वक ही होता है किन्तु मतिज्ञान श्रुतपूर्वक नहीं होता । सूत्र- ९४ सामान्य रूप से मति, मतिज्ञान और मति-अज्ञान दोनों प्रकार का है । परन्तु विशेष रूप से वही मति सम्यक्दृष्टि का मतिज्ञान है और मिथ्यादृष्टि की मति, मति-अज्ञान होता है। इसी प्रकार विशेषता रहित श्रुत, श्रुतज्ञान और श्रुत-अज्ञान उभय रूप हैं । विशेषता प्राप्त वही सम्यक्दृष्टि का श्रुत, श्रुतज्ञान और मिथ्यादृष्टि का श्रुत-अज्ञान होता है। सूत्र-९५ भगवन् ! वह आभिनिबोधिक ज्ञान किस प्रकार का है ? दो प्रकार का-श्रुतनिश्रित और अश्रुतनिश्रित । अश्रुतनिश्रित चार प्रकार का है । यथासूत्र-९६ औत्पत्तिकी-सहसा जिसकी उत्पत्ति हो, वैनयिकी-विनय से उत्पन्न, कर्मजा-अभ्यास से उत्पन्न, पारिणामिकी-उम्र के परिपाक से उत्पन्न । ये चार प्रकार की बुद्धियाँ शास्त्रकारों ने वर्णित की हैं। सूत्र - ९७ जिस बुद्धि के द्वारा पहले बिना देखे और बिना सुने ही पदार्थों के विशुद्ध अर्थ को तत्काल ही ग्रहण कर लिया जाता है और जिससे अव्याहत-फल का योग होता है, वह औत्पत्तिकी बुद्धि है। सूत्र-९८-१०० भरत, शिला, कुर्कुट, तिल, बाल, हस्ति, अगड, वनखंड, पायस, अतिम, पत्र, खाडहिल, पंचपियर, प्रणितवृक्ष, क्षुल्लक, पट, काकीडा, कौआ, उच्चारपरिक्षा, हाथी, भांड, गोलक, स्तम्भ, खुड्डग, मार्ग, स्त्री, पति, पुत्र, मधुसिक्थ, मुद्रिका, अंक, सुवर्णमहोर, भिक्षुचेटक, निधान, शिक्षा, अर्थशास्त्र, इच्छामह, लाख-यह सर्व औत्पातिकी बुद्धि के दृष्टान्त हैं । (कथा-विस्तार वृत्तिग्रन्थों से जानना ।) सूत्र-१०१ विनय से पैदा हुई बुद्धि कार्यभार वहन करने में समर्थ होती है । धर्म, अर्थ, काम का प्रतिपादन करनेवाले सूत्र तथा अर्थ का प्रमाण-सार ग्रहण करनेवाली है तथा वह विनय से उत्पन्न बुद्धि इस लोक और परलोक में फल देनेवाली होती है। सूत्र- १०२-१०३ निमित्त, अर्थशास्त्र, लेख, गणित, कूप, अश्व, गर्दभ, लक्षण, ग्रंथि, अगड, रथिक, गणिका, शीताशाटी, नीव्रोदक, बैलों की चोरी, अश्व का मरण, वृक्ष से गिरना । ये वैनयिकी बुद्धि के उदाहरण हैं। सूत्र - १०४ __-उपयोग से जिसका सार देखा जाता है, अभ्यास और विचार से जो विस्तृत बनती है और जिससे प्रशंसा प्राप्त होती है, वह कर्मजा बुद्धि है। सूत्र - १०५ सुवर्णकार, किसान, जुलाहा, दर्वीकार, मोती, घी, नट, दर्जी, बढ़ई, हलवाई, घट तथा चित्रकार | इन सभी के उदाहरण कर्म से उत्पन्न बुद्धि के हैं। मुनि दीपरत्नसागर कृत् (नन्दी) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 14
SR No.034713
Book TitleAgam 44 Nandi Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 44, & agam_nandisutra
File Size2 MB
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