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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, 'उत्तराध्ययन
अध्ययन / सूत्रांक
अध्ययन- ३० तपोमार्गगति
सूत्र - ११८९
भिक्षु राग और द्वेष से अर्जित पाप कर्म का तप के द्वारा जिस पद्धति से क्षय करता है, उस पद्धति को तुम एकाग्र मन से सुनो।
सूत्र- १९९०-१९९१
प्राण वध मृषावाद, अदत्त, मैथुन, परिग्रह और रात्रि भोजन की विरति से एवं पाँच समिति और तीन गुप्ति से-सहित, कषाय से रहित, जितेन्द्रिय, निरभिमानी, निःशल्य जीव अनाश्रव होता है ।
सूत्र - ११९२
उक्त धर्म साधना से विपरीत आचरण करने पर राग-द्वेष से अर्जित कर्मों को भिक्षु किस प्रकार क्षीण करता है, उसे एकाग्र मन से सुनो।
सूत्र - ११९३ - ११९४
किसी बड़े तालाब का जल, जल आने के मार्ग को रोकने से पहले के जल को उलीचने से और सूर्य के ताप से क्रमशः जैसे सूख जाता है उसी प्रकार संयमी के करोड़ों भवों के संचित कर्म, पाप कर्म के आने के मार्ग को रोकने पर तप से नष्ट होते हैं।
सूत्र- १९९५-१९९६
वह तप दो प्रकार का है- बाह्य और आभ्यन्तर बाह्य तप छह प्रकार का है आभ्यन्तर तप भी छह प्रकार का कहा है। अनशन, ऊनोदरिका, भिक्षाचर्या, रस-परित्याग, काय- क्लेश और संलीनता-यह बाह्य तप है । सूत्र - ११९७ - ११९९
अनशन तप के दो प्रकार हैं- इत्वरिक और मरणकाल । इत्वरिक सावकांक्ष होता है। मरणकाल निरवकांक्ष होता है । संक्षेप से इत्वरिक-तप छह प्रकार का है-श्रेणि, तप, धन-तप, वर्ग-तप-वर्ग-वर्ग तप और छठा प्रकीर्ण तप । इस प्रकार मनोवांछित नाना प्रकार के फल को देने वाला इत्वरिक अनशन तप जानना ।
सूत्र - १२०० - १२०१
कायचेष्टा के आधार पर मरणकालसम्बन्धी अनशन के दो भेद हैं-सविचार और अविचार अथवा मरणकाल अनशन के सपरिकर्म और अपरिकर्म ये दो भेद हैं । अविचार अनशन के निर्हांही और अनिर्हारी ये दो भेद भी होते हैं । दोनों में आहार का त्याग होता है ।
सूत्र - १२०२
संक्षेप में अवमौदर्य द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और पर्यायों की अपेक्षा से पाँच प्रकार का हैं।
सूत्र - १२०३
जो जितना भोजन कर सकता है, उसमें से कम-से-कम एक सिक्थ तथा एक ग्रास आदि के रूप में कम भोजन करना, द्रव्य से 'ऊणोदरी' तप है ।
सूत्र - १२०४ - १२०७
ग्राम, नगर, राजधानी, निगम, आकर, पल्ली, खेड़, कर्बट, द्रोणमुख, पत्तन, मण्डप, संबाध आश्रम पद, विहार, सन्निवेश, समाज, घोष, स्थली, सेना का शिबिर, सार्थ, संवर्त, कोट-पाडा, गली और घर-इन क्षेत्रों में तथा इसी प्रकार के दूसरे क्षेत्रों में निर्धारित क्षेत्र - प्रमाण के अनुसार भिक्षा के लिए जाना, क्षेत्र से 'ऊणोदरी' तप है । अथवा पेटा, अर्ध-पेटा, गोमूत्रिका, पतंग-वीथिका, शम्बूकावर्ता और आयतगत्वा प्रत्यागता यह छह प्रकार का क्षेत्र से 'ऊणोदरी' तप है ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (उत्तराध्ययन) आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
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