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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, ‘उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक सूत्र-४६
शिक्षण काल से पूर्व ही शिष्य के विनय-भाव से परिचित, संबुद्ध, पूज्य आचार्य उस पर प्रसन्न रहते हैं। प्रसन्न होकर वे उसे अर्थगंभीर विपुल श्रुतज्ञान का लाभ करवाते हैं। सूत्र-४७
वह शिष्य पूज्यशास्त्र होता है-उसके सारे संशय मिट जाते हैं । वह गुरु के मन को प्रिय होता है । वह कर्मसम्पदा युक्त होता है । तप समाचारी और समाधि सम्पन्न होता है । पांच महाव्रतों का पालन करके वह महान् तेजस्वी होता है। सूत्र - ४८
वह देव, गन्धर्व और मनुष्यों से पूजित विनयी शिष्य मल पंक से निर्मित इस देह को त्याग कर शाश्वत सिद्ध होता है अथवा अल्प कर्म वाला महान् ऋद्धिसम्पन्न देव होता है । -ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-१ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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