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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, ‘उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक अध्ययन-१६-ब्रह्मचर्य समाधि स्थान सूत्र - ५११
आयुष्मन ! भगवान ने ऐसा कहा है। स्थविर भगवन्तों ने निर्ग्रन्थ प्रवचन में दस ब्रह्मचर्य-समाधि-स्थान बतलाए हैं- जिन्हें सुन कर, जिनके अर्थ का निर्णय कर भिक्षु संयम, संवर तथा समाधि से अधिकाधिक सम्पन्न होगुप्त हो, इन्द्रियों को वश में रखे-ब्रह्मचर्य को सुरक्षित रखे और सदा अप्रमत्त होकर विहार करे ।
सूत्र - ५१२
स्थविर भगवन्तों ने ब्रह्मचर्य-समाधि के वे कौनसे स्थान बतलाए हैं ?
स्थविर भगवन्तों ने ब्रह्मचर्य-समाधि के ये दस स्थान बतलाए हैं-जो विविक्त शयन और आसन का सेवन करता है, वह निर्ग्रन्थ है । जो स्त्री, पशु और नपुंसक से संसक्त शयन और आसन का सेवन नहीं करता है, वह निर्ग्रन्थ है । ऐसा क्यों? आचार्य कहते हैं
त्री, पश और नपंसक से आकीर्ण शयन और आसन सेवन करता है, उस ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ को ब्रह्मचर्य के विषय मे शंका, कांक्षा या विचिकित्सा उत्पन्न होती है या ब्रह्मचर्य का विनाश होता है, या उन्माद पैदा होता है, दीर्घकालिक रोग और आतंक होता है, या वह केवलीप्ररूपित धर्म से भ्रष्ट होता है । अतः स्त्री, पशु और नपुंसक से संसक्त शयन और आसन का जो सेवन नहीं करता है, वह निर्ग्रन्थ है। सूत्र - ५१३
जो स्त्रियों की कथा नहीं करता है, वह निर्ग्रन्थ है । ऐसा क्यों ? आचार्य कहते हैं-जो स्त्रियों की कथा करता है, उस ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ को ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा या विचिकित्सा उत्पन्न होती है, यावत् केवलीप्ररूपित धर्म से भ्रष्ट होता है। अतः निर्ग्रन्थ स्त्रियों की कथा न करे। सूत्र- ५१४
जो स्त्रियों के साथ एक आसन पर नहीं बैठता है, वह निर्ग्रन्थ है । ऐसा क्यों? -जो स्त्रियों के साथ एक आसन पर बैठता है, उस ब्रह्मचारी को ब्रह्मचर्य के विषय में शंका होती है, यावत् केवली प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट होता है। अतः निर्ग्रन्थ स्त्रियों के साथ एक आसन पर न बैठे। सूत्र-५१५
जो स्त्रियों की मनोहर एवं मनोरम इन्द्रियों को नहीं देखता है और उनके विषय में चिन्तन नहीं करता है, वह निर्ग्रन्थ है। ऐसा क्यों ? -जो स्त्रियों की मनोहर एवं मनोरम इन्द्रियों को देखता है और उनके विषय में चिन्तन करता है, उस ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ को ब्रह्मचर्य के विषय में शंका होती है, यावत् धर्म से भ्रष्ट हो जाता है । इसलिए निर्ग्रन्थ यावत् विषय में चिन्तन करे । सूत्र-५१६
जो मिट्टी की दीवार के अन्तर से, परदे के अन्तर से अथवा पक्की दीवार के अन्तर से स्त्रियों के कूजन, रोदन, गीत, हास्य, स्तनित, आक्रन्दन या विलाप के शब्दों को नहीं सुनता है, वह निर्ग्रन्थ है । ऐसा क्यों?
उस ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ को ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा या विचिकित्सा उत्पन्न होती है, यावत् धर्म से भ्रष्ट हो जाता है । अतः निर्ग्रन्थ मिट्टी की दीवार के अन्तर से, परदे के अन्तर से स्त्रियों के कूजन, रोदन, गीत, हास्य, गर्जन, आक्रन्दन या विलाप के शब्दों को न सुने । सूत्र-५१७
जो संयमग्रहण से पूर्व को रति और क्रीड़ा का अनुस्मरण नहीं करता है, वह निर्ग्रन्थ है । ऐसा क्यों ? उस ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ को ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा या विचिकित्सा उत्पन्न होती है, यावत् केवली-प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है । अतः निर्ग्रन्थ संयम ग्रहण से पूर्व की रति और क्रीड़ा का अनुस्मरण न करे ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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