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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, ‘उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक सूत्र -४०५-४०६
मुनि-''आत्मभाव की प्रसन्नतारूप अकलुष लेश्यावाला धर्म मेरा ह्रद है, जहाँ स्नान कर मैं विमल, विशुद्ध एवं शान्त होकर कर्मरज को दूर करता हूँ।
कुशल पुरुषों ने इसे ही स्नान कहा है । ऋषियों के लिए यह महान् स्नान ही प्रशस्त है । इस धर्मह्रद में स्नान करके महर्षि विमल और विशुद्ध होकर उत्तम स्थान को प्राप्त हुए हैं ।'' - ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-१२ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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