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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, 'उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक अध्ययन-१२-हरिकेशीय सूत्र - ३६०
हरिकेशबल-चाण्डालकुल में उत्पन्न हुए थे, फिर भी ज्ञानादि उत्तम गुणों के धारक और जितेन्द्रिय भिक्षु थे सूत्र-३६१
वे ईर्या, एषणा, भाषा, उच्चार, आदान-निक्षेप इन पाँच समितियों में यत्नशील समाधिस्थ संयमी थे। सूत्र-३६२
मन, वाणी और काय से गुप्त जितेन्द्रिय मुनि, भिक्षा लेने यज्ञमण्डप में गये, जहाँ ब्राह्मण यज्ञ कर रहे थे । सूत्र-३६३
तप से उनका शरीर सुख गया था और उनके उपधि एवं उपकरण भी प्रान्त थे । उक्त स्थिति में मुनि को आते देखकर अनार्य उनका उपहास करने लगे। सूत्र-३६४
जातिमद से प्रतिस्तब्ध-दृप्त, हिंसक, अजितेन्द्रिय, अब्रह्मचारी और अज्ञानी लोगों ने इस प्रकार कहासूत्र-३६५-३६६
बीभत्स रूपवाला, काला, विकराल, बेडोल, मोटी नाकवाला, अल्प एवं मलिन वस्त्रवाला, धूलिधूसरित होने से भूत की तरह दिखाई देनेवाला, गले में संकरदूष्य धारण करनेवाला यह कौन आ रहा है ?
__ अरे अदर्शनीय ! तू कौन है ? यहाँ किस आशा से आया है तू ? गंदे और धूलिधूसरित वस्त्र से तू अधनंगा पिशाच की तरह दीख रहा है । जा, भाग यहाँ से, यहाँ क्यों खड़ा है ?'' सूत्र-३६७-३६९
उस समय महामुनि के प्रति अनुकम्पा का भाव रखनेवाले तिन्दुक वृक्षवासी यक्षने अपने शरीर को छुपाकर ऐसे वचन कहे- 'मैं श्रमण हूँ | मैं संयत हूँ । मैं ब्रह्मचारी हूँ | मैं धन, पचन और परिग्रह का त्यागी हूँ। भिक्षा समय दूसरों के लिए निष्पन्न आहार के लिए यहाँ आया हूँ।
यहाँ प्रचूर अन्न दिया, खाया और उपभोग में लाया जा रहा है । आपको मालूम होना चाहिए, मैं भिक्षाजीवी हूँ । अतः बचे हुए अन्न में से कुछ इस तपस्वी को भी मिल जाए । सूत्र - ३७०
रुद्रदेव-''यह भोजन केवल ब्राह्मणों के लिए तैयार किया गया है । यह एकपक्षीय है, अतः दूसरों के लिए अदेय है । हम तुझे यह यज्ञार्थनिष्पन्न अन्न जल नहीं देंगे । फिर तू यहाँ क्यों खड़ा है ?'' सूत्र - ३७१
यक्ष-"अच्छी फसल की आशा से किसान जैसे ऊंची और नीची भूमि में भी बीज बोते हैं । इस कृषकदृष्टि से ही मुझे दान दो । मैं भी पुण्यक्षेत्र हूँ, अतः मेरी भी आराधना करो।'' सूत्र - ३७२
रुद्रदेव-' 'संसार में ऐसे क्षेत्र हमें मालूम हैं, जहाँ बोये गए बीज पूर्ण रूप से उग आते हैं । जो ब्राह्मण जाति और विद्या से सम्पन्न हैं, वे ही पुण्यक्षेत्र हैं। सूत्र- ३७३-३७४
यक्ष- जिनमें क्रोध, मान, हिंसा, झूठ, चोरी और परिग्रह हैं, वे ब्राह्मण जाति और विद्या से विहीन पापक्षेत्र हैं ।" हे ब्राह्मणो ! इस संसार में आप केवल वाणी का भार ही वहन कर रहे हो । वेदों को पढ़कर भी उनके अर्थ नहीं जानते । जो मुनि भिक्षा के लिए समभावपूर्वक ऊंच नीच घरों में जाते हैं, वे ही पुण्य-क्षेत्र हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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