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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, ‘उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक मिश्रित बालू । और विविध मणि भी बादर पृथ्वीकाय के अन्तर्गत हैं-गोमेदक, रुचक, अंक, स्फटिक, लोहिताक्ष, मरकत, मसारगल्ल, भुजमोचक, इन्द्रनील, चन्दन, गेरुक एवं हंसगर्भ, पुलक, सौगन्धिक, चन्द्रप्रभ, वैडूर्य, जलकान्त और सूर्यकान्त । सूत्र - १५४१
ये कठोर पृथ्वीकाय के छत्तीस भेद हैं । सूक्ष्म पृथ्वीकाय के जीव एक ही प्रकार के हैं, अतः वे अनानात्व हैं सूत्र - १५४२
सूक्ष्म पृथ्वीकाय के जीव सम्पूर्ण लोक में और बादर पृथ्वीकाय के जीवलोक के एक देश में व्याप्त हैं । अब चार प्रकार से पृथ्वीकायिक जीवों के काल-विभाग का कथन करूँगा। सूत्र - १५४३-१५४६
पृथ्वीकायिक जीव प्रवाह की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त हैं । उनकी २२०० वर्ष की उत्कृष्ट और अन्तर्मुहूर्त की जघन्य स्थिति है । उनकी असंख्यात कालकी उत्कृष्ट और अन्तर्मुहूर्त की जघन्य काय-स्थिति है । पृथ्वी के शरीर को न छोड़कर निरन्तर पृथ्वीकाय में ही पैदा होते रहना, काय-स्थिति है । पृथ्वी के शरीर को एकबार छोड़कर फिर वापस पृथ्वी के शरीर में उत्पन्न होने के बीचका अन्तरकाल जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल हैं। सूत्र- १५४७
वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान के आदेश से तो पृथ्वी के हजारों भेद होते हैं । सूत्र - १५४८-१५५०
अप् काय जीव के दो भेद हैं-सूक्ष्म और बादर । पुनः दोनों के पर्याप्त और अपर्याप्त दो-दो भेद हैं । बादर पर्याप्त अप्काय जीवों के पाँच भेद हैं-शुद्धोदक, ओस, हरतनु, महिका और हिम । सूक्ष्म अप्काय के जीव एक प्रकार के हैं, उनके भेद नहीं हैं । सूक्ष्म अप्काय के जीव सम्पूर्ण लोक में और बादर अप्काय के जीवलोक के एक भाग में व्याप्त हैं। सूत्र - १५५१-१५५४
अप्कायिक जीव प्रवाह की अपेक्षा से अनादि-अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादि-सान्त हैं । उनकी ७००० वर्ष की उत्कृष्ट और अन्तर्मुहूर्त की जघन्य आयुस्थिति है । उनकी असंख्यात काल की उत्कृष्ट और अन्तर्मुहर्त की जघन्य कायस्थिति है । अप्काय को छोड़कर निरन्तर अप्काय में ही पैदा होना, काय स्थिति है। अप्काय को छोड़कर पुनः अप्काय में उत्पन्न होने का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्त-काल का है। सूत्र - १५५५
वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से अप्काय के हजारों भेद हैं। सूत्र - १५५६-१५५७
वनस्पति काय के जीवों के दो भेद हैं-सूक्ष्म और बादर । पुनः दोनों के पर्याप्त और अपर्याप्त दो-दो भेद हैं। बादर पर्याप्त वनस्पतिकाय के जीवों के दो भेद हैं-साधारण-शरीर और प्रत्येक-शरीर । सूत्र - १५५८-१५५९
प्रत्येक-शरीर वनस्पति काय के जीवों के अनेक प्रकार हैं । जैसे-वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वल्ली और तृण | लता-वलय, पर्वज, कुहण, जलरुह, औषधि, धान्य, तृण और हरितकाय-ये समी प्रत्येक शरीरी हैं। सूत्र - १५६०-१५६३
___ साधारणशरीरी अनेक प्रकार के हैं-आलुक, मूल, शृंगवेर, हिरिलीकन्द, सिरिलीकन्द, सिस्सिरिलीकन्द, जावईकन्द, केद-कंदलीकन्द, प्याज, लहसुन, कन्दली, कुस्तुम्बक, लोही, स्निहु, कुहक, कृष्ण, वज्रकन्द और मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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