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अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक
आगम सूत्र ४२, मूलसूत्र-३, 'दशवैकालिक'
अध्ययन-३- क्षुल्लकाचार कथा
सूत्र -१७
जिनकी आत्मा संयम से सुस्थित है; जो बाह्य-आभ्यन्तर-परिग्रह से विमुक्त हैं; जो त्राता हैं; उन निर्ग्रन्थ महर्षियों के लिए ये अनाचीर्ण या अग्राह्य हैंसूत्र -१८
औद्देशिक (निर्ग्रन्थ के निमित्त से बनाया गया), क्रीत-साधु के निमित्त खरीदा हुआ, नित्याग्र-निमंत्रित करके दिया जानेवाला), अभिहृत-सम्मुख लाया गया, रात्रिभोजन, स्नान, गन्ध, माल्य, वीजनपंखा झेलना । सूत्र - १९
सन्निधि-(खाद्य पदार्थो का संयच), गृहि-अमत्र गृहस्थ के बर्तन में भोजन, राजपिण्ड, किमिच्छक-'क्या चाहते हो ?' ऐसा पूछ कर दिया जानेवाला, सम्बाधन-अंगमर्दन, दंतधावन, सम्पृच्छना-गृहस्थों से कुशल आदि पूछना, देहप्रलोकन (दर्पण आदि में शरीर को देखना) सूत्र - २०
__ अष्टापद (शतरंज खेलना), नालिका-पासा का जुआ खेलना, छत्रधारण करना, चिकित्सा कर्म-चिकित्सा करना-कराना, उपानह - जूते आदि पहनना, ज्योति-समारम्भ-(अग्नि प्रज्वलित करना)। सूत्र -२१
शय्यातरपिण्ड-स्थानदाता से आहार लेना, आसन्दी-कुर्सी या खाट पर बैठना, पर्यंक पलंग, ढोलिया आदि पर बैठना, गहान्तरनिषद्या-गृहस्थ के घर में बैठना और गात्रउद्वर्तन-शरीर पर उबटन लगाना। सूत्र - २२
गृहि-वैयावृत्य-गृहस्थ की सेवा-शुश्रूषा करना, आजीववृत्तित्ता-शिल्प, जाति, कुल का अवलम्बन लेकर आजीविका करना, तप्ताऽनिर्वृतभोजित्व-अर्धपक्व आहारपानी का उपभोग करना, आतुरस्मरण-आतुरदशा में पूर्वभुक्त भोगों का स्मरण करना)। सूत्र - २३
अनिवृतमूलक-अपक्व सचित्त मूली, श्रृङ्गबेर-अदरख, इक्षुखण्ड-सजीव ईख के टुकड़े, सचित्त कन्द, मूल, आमक फल-कच्चा फल, बीज (अपक्व बीज लेना व खाना)। सूत्र - २४
आमक सौवर्चल-अपक्व सेंवलनमक, सैन्धव-लवण, रुमा लवण, अपक्व समुद्री नमक, पांशु-क्षार, काललवण लेना व खाना। सूत्र - २५
धूपन-धूप देना, वमन, बस्तिकर्म, विरेचन, अंजन, दंतधावन, गात्राभ्यंग मालिश करना और विभूषणविभूषा करना। सूत्र - २६
'जो संयम (और तप) में तल्लीन हैं, वायु की तरह लघुभूत होकर विहार करते हैं, तथा जो निर्ग्रन्थ महर्षि हैं, उनके लिए ये सब अनाचीर्ण-अनाचरणीय हैं।'
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (दशवैकालिक) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
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