________________
आगम सूत्र ४२, मूलसूत्र-३, 'दशवैकालिक'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक [४२] दशवैकालिक मूलसूत्र-३- हिन्दी अनुवाद
अध्ययन-१-द्रुमपुष्पिका सूत्र -१
धर्म उत्कृष्ट मंगल है । उस धर्म का लक्षण है - अहिंसा, संयम और तप । जिसका मन सदा धर्म में लीन रहता है उसे देव भी नमस्कार करते है। सूत्र -२
जिस प्रकार भ्रमर, वृक्षों के पुष्पों में सें थोड़ा-थोड़ा रस पीता है तथा पुष्प को पीड़ा नहीं पहुँचाता और वह अपने आपको तृप्त कर लेता है।
सूत्र -३
उसी प्रकार लोक में जो मुक्त, श्रमण साधु हैं, वे दान-भक्त की एषणा में रत रहते है; जैसे भौंरे फूलों में । सूत्र -४
हम इस ढंग से वृत्ति भिक्षा प्राप्त करेंगे, (जिससे) किसी जीव का उपहनन न हो, जिस प्रकार भ्रमर अनायास प्राप्त, फूलों पर चले जाते हैं, (उसी प्रकार) श्रमण भी गृहस्थों के द्वारा अपने लिए सहजभाव से बनाए हुए, आहार के लिए, उन घरों में भिक्षा के लिए जाते है । सूत्र -५
जो बुद्ध पुरुष मधुकर के समान अनिश्रित हैं, नाना [विध अभिग्रह से युक्त होकर] पिण्डों में रत हैं और दान्त हैं, वे अपने गुणों के कारण साधु कहलाते है । - ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-१ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (दशवैकालिक) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
Page 5