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आगम सूत्र ४२, मूलसूत्र-३, 'दशवैकालिक'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र - ४८१-४८२
आचारसमाधि चार प्रकार की है; इकलोह, परलोक, कीर्ति, वर्ण, शब्द और श्लोक, आर्हत हेतुओं के सिवाय अन्य किसी भी हेतु ईन चारों को लेकर आचार का पालन नहीं करना चाहिए, यहाँ आचारसमाधि के विषय में एक श्लोक है-'जो जिनवचन में रत होता है, जो क्रोध से नहीं भन्नाता, जो ज्ञान से परिपूर्ण है और जो अतिशय मोक्षार्थी है, वह मन और इन्द्रियों का दमन करने वाला मुनि आचारसमाधि द्वारा संवृत्त होकर मोक्ष को अत्यन्त निकट करने वाला होता है। सूत्र - ४८३-४८४
परम-विशुद्धि और (संयम में) अपने को भलीभाँति सुसमाहित रखने वाला जो साधु है, वह चारों समाधियों को जान कर अपने लिए विपुल हितकर, सुखावह एवं कल्याण कर मोक्षपद को प्राप्त कर लेता है। जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है, नरक आदि सब पर्यायों को सर्वथा त्याग देता है । या तो शाश्वत सिद्ध हो जाता है, अथवा महर्द्धिक देव होता है।
अध्ययन-९ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (दशवैकालिक) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
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