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________________ आगम सूत्र ४२, मूलसूत्र-३, 'दशवैकालिक' अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र -४०८ स्त्रियों के अंग, प्रत्यंग, संस्थान, चारु-भाषण और कटाक्ष के प्रति (साधु) ध्यान न दे, क्योंकि ये कामराग को बढ़ाने वाले हैं। सूत्र - ४०९ शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श, इन पुद्गलों के परिणमन को अनित्य जान कर मनोज्ञ विषयों में रागभाव स्थापित न करे। सूत्र - ४१० उन (इन्द्रियों के विषयभूत) पुद्गलों के परिणमन को जैसा है, वैसा जान कर अपनी प्रशान्त आत्मा से तृष्णारहित होकर विचरण करे । सूत्र - ४११ जिस (वैराग्यभावपूर्ण) श्रद्धा से घर से निकला और प्रव्रज्या को स्वीकार किया, उसी श्रद्धा से मूल-गुणों का अनुपालन करे। सूत्र - ४१२ (जो मुनि) इस तप, संयमभोग और स्वाध्याययोग में सदा निष्ठापूर्वक प्रवृत्त रहता है, वह अपनी और दूसरों की रक्षा करने में उसी प्रकार समर्थ होता है, जिस प्रकार सेना से घिर जाने पर समग्र शस्त्रो से सुसज्जित शूरवीर। सूत्र - ४१३ स्वाध्याय और सद्ध्यान में रत, त्राता, निष्पापभाव वाले (तथा) तपश्चरण में रत मुनि का पूर्वकृत कर्म उसी प्रकार विशुद्ध होता है, जिस प्रकार अग्नि द्वारा तपाए हुए रूप्य का मल । सूत्र - ४१४ जो (पूर्वोक्त) गुणों से युक्त है, दुःखों को सहन करने वाला है, जितेन्द्रिय है, श्रुत युक्त है, ममत्वरहित और अकिंचन है; वह कर्मरूपी मेघों के दूर होने पर, उसी प्रकार सुशोभित होता है, जिस प्रकार सम्पूर्ण अभ्रपटल से विमुक्त चन्द्रमा । - ऐसा मैं कहता हूँ। अध्ययन-८ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् (दशवैकालिक) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 35
SR No.034711
Book TitleAgam 42 Dashvaikalik Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 42, & agam_dashvaikalik
File Size2 MB
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