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________________ आगम सूत्र ४१/२, मूलसूत्र-२/२, "पिंडनियुक्ति' सके इतनी लाए तो माने । यह सुनकर अभिमानी गुणचन्द्र मुनिने कहा कि, 'अच्छा, तुम्हारी मरजी होगी उतनी लाकर दूँगा।' ऐसी प्रतिज्ञा करके बड़ा नंदीपात्र लेकर सेव लेने के लिए नीकला । घूमते-घूमते एक परिवार के घर में काफी सेव, घी, गुड़ आदि तैयार देखने को मिला । इसलिए साधु ने वहाँ जाकर कई प्रकार के वचन बोलकर सेव माँगी, लेकिन परिवार की स्त्री सुलोचनाने सेव देने से साफ इन्कार कर दिया और कहा कि, तुम्हें तो थोड़ा सा भी नहीं दूंगी । इसलिए साधु ने मानदशा में आकर कहा कि, मैं तुम्हारे घर से ही यकीनन घी गुड़ के साथ सेव लूँगा । सुलोचना भी गर्व से बोली कि, यदि तुम इस सेव में से जरा सी भी सेव पा लोगे तो मेरे नाक पर पिशाब किया ऐसा समझना । क्षुल्लक साधु ने सोचा कि, यकीनन ऐसा ही करूँगा । फिर घर से बाहर नीकलकर किसी को पूछा कि, यह किसका घर है ? उसने कहा कि, यह विष्णुमित्र का घर है । विष्णुमित्र कहाँ है ? अभी चौराहे पर होंगे। गुणचन्द्र मुनि चोरा पर पहुंचे और वहाँ जाकर पूछा कि, तुममें से विष्णुमित्र कौन है ? तुम्हें उनका क्या काम है ? मुझे उनसे कुछ माँगना है। वो विष्णुमित्र, इन सबका बहनोई जैसा था, इसलिए मझाक में कहा कि वो तो कृपण है, वो तुम्हें कुछ नहीं दे सकेगा, इसलिए हमारे पास जो माँगना हो वो माँगो । विष्णुमित्र को लगा कि, यह तो मेरा नीचा दिखेगा, इसलिए उन सबके सामने साधु को कहा कि, मैं विष्णुमित्र हूँ, तुम्हें जो माँगना हो वो माँगो, यह सभी मझाक में बोलते हैं वो तुम मत समझना। तब साधु ने कहा कि, यदि तुम स्त्री प्रधान छह पुरुष में से एक भी न हो तो मैं माँगू । यह सुनकर चौटे पर बैठे दूसरे लोगों ने पूछा कि, वो स्त्रीप्रधान छह पुरुष कौन ? जिसमें से एक के लिए तुम ऐसा शक कर रहे हो ? गुणचन्द्र मुनि ने कहा कि, सुनो ! उनके नाम - १. श्वेतांगुली, २. बकोडायक, ३. किंकर, ४. स्नातक, ५. गीधड़ की प्रकार उछलनीवाला और ६. बच्चे का मलमूत्र साफ करनेवाला । इस प्रकार उस साधु ने कहा कि, तुरन्त चौटे पर बैठे सभी लोग एक साथ हँसकर बोल पड़े कि, यह तो छह पुरुषों के गुण को धारण करनेवाला है, इसलिए स्त्रीप्रधान ऐसे इनके पास कुछ मत माँगना । यह सुनकर विष्णुमित्र बोला कि, मैं उन छह पुरुष जैसा नपुंसक नहीं हूँ। इसलिए तुम्हें जो चाहिए माँगो, मैं जरुर दूंगा । साधुने कहा कि, यदि ऐसा है तो घी. गड के साथ पात्र भरकर मझे सेव दो। चलो, पात्र भरकर सेव दें। ऐसा क विष्णुमित्र साधु को लेकर अपने घर की ओर चलने लगा। रास्ते में साधुने सारी बात बताई कि, तुम्हारे घर गया था लेकिन तुम्हारी बीवीने देखे का इन्कार कया है, यदि वो मौजूद होंगी तो नहीं देंगी । विष्णुमित्र ने कहा कि, यदि ऐसा है तो तुम यहाँ खड़े रहो । थोड़ी देर के बाद तुम्हें बुलाकर सेव हूँ । विष्णुमित्र घर गया और अपनी बीवी को पूछा कि, सेव पक गई है ? घी, गुड़ सब चीजें तैयार हैं ? स्त्री ने कहा कि, हाँ, सबकुछ तैयार है । विष्णुमित्रने सब देखा और गुड़ देखते ही बोला कि, इतना गुड़ नहीं होगा, ऊपर से दूसरा गुड़ लाओ । स्त्री सीड़ी रखकर गुड़ लेने के लिए ऊपर चड़ी, इसलिए विष्णुमित्र ने सीड़ी ले ली । फिर साधु को बुलाकर घी, गुड़, सेव देने लगा । जब सुलोचना स्त्री गुड़ लेकर नीचे उतरने जाती है तो सीड़ी नहीं थी। इसलिए नीचे देखने लगी तो विष्णुमित्र उस साधु को सेव आदि दे रहा था । यह देखते ही वो बोल पड़ी, 'अरे ! इन्हें सेव मत देना ।' साधुने भी उनके सामने देखकर अपनी ऊंगली नाक पर रखकर कहा कि, मैंने तुम्हारी नाक पर पिशाब किया। ऐसा कहकर घी, गुड़, सेव भरा पात्र लेकर उपाश्रय में गया। इस प्रकार भिक्षा लेना मानपिंड़ कहलाता है । ऐसी भिक्षा साधु को न कल्पे । क्योंकि वो स्त्री-पुरुष को साधु के प्रति द्वेष जगे इसलिए फिर से भिक्षा आदि न दे । शायद दोनों में से किसी एक को द्वेष हो । क्रोधित होकर शायद साधु को मारे या मार डाले तो आत्मविराधना होती है, लोगों के सामने जैसे-तैसे बोले उसमें प्रवचन विराधना होती है । इसलिए साधु ने ऐसी मानपिंड़ दोषवाली भिक्षा नहीं लेनी चाहिए। सूत्र- ५१२-५१८ आहार पाने के लिए दूसरों को पता न चले उस प्रकार से मंत्र, योग, अभिनय आदि से अपने रूप में बदलाव लाकर आहार पाना । इस प्रकार से पाया हुआ आहार मायापिंड़ नाम के दोष से दूषित माना जाता है । मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(पिंडनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 38
SR No.034710
Book TitleAgam 41 2 Pindniryukti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 41 2, & agam_pindniryukti
File Size2 MB
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