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________________ आगम सूत्र ४१/२, मूलसूत्र-२/२, पिंडनिर्यक्ति' सूत्र - ३४४-३५० प्रामित्य यानि साधु के लिए उधार लाकर देना । ज्यादा लाना दो प्रकार से । १. लौकिक और २. लोकोत्तर। लौकिक में बहन आदि का दृष्टांत और लोकोत्तर में साधु-साधु में वस्त्र आदि का । कोशल देश के किसी एक गाँव में देवराज नाम का परिवार रहता था । उसको सारिका नाम की बीवी थी। एवं सम्मत आदि कईं लड़के और सम्मति आदि कईं लड़कियाँ थी । सभी जैनधर्मी थे । उस गाँव में शिवदेव नाम के शेठ थे। उन्हें शिवा नाम की बीवी थी । वो शेठ दुकान में सारी चीजें रखते थे और व्यापार करते थे । एक दिन उस गाँव में श्री समुद्रघोष नाम के आचार्य शिष्यों के साथ पधारे । सभी धर्म सुनाते हुए, उनके उपदेश से सम्मत नाम के लड़के ने आचार्य भगवंत के पास दीक्षा ली । सम्मत साधु गीतार्थ बने । अपने परिवार में कोई दीक्षा ले तो अच्छा, वो ही सही उपकार है । इस भावना से आचार्य भगवंत की आज्ञा लेकर अपने गाँव में आए । वहाँ किसी ने पूछा कि, 'देवशर्मा परिवार से कोई है क्या ?' उस पुरुष ने कहा कि, उनके घर के सभी मर गए हैं, केवल सम्मति नाम की विधवा बेटी कुछ स्थान पर रहती है । साधु बहन के घर आए । भाई मुनि को आए हुए देखकर बहन को काफी आनन्द हुआ और ठहरने की जगह दी। फिर साधु के लिए पकाने के लिए जा रही थी वहाँ मुनि ने निषेध किया कि, 'हमारे लिए किया गया हमें न कल्पे ।' सम्मति के पास पैसे न होने के कारण शिवदेव शेठ की दुकान से दिन-ब-दिन दुगुना देने के कुबूल करते दो पल तैल लाई और साधु को वहोराया । भाई मुनि ने उसे निर्दोष समझकर ग्रहण किया । साधु के पास धर्म सुनने का आदि के कारण से दूसरों का काम करने के लिए नहीं जा सकी । दूसरे दिन भाई मुनिने विहार किया । इसलिए उन्हें बिदा करने गई और घर आते ही उनके वियोग के दुःख से दूसरे दिन भी पानी भरना आदि दूसरों का काम न हो सका । इसलिए चार पल्ली जितना तेल चड़ा । तीसरे दिन आठ पल्ली हुई । उतना एक दिन में काम करके पा न सकी । रोज खाने के निर्वाह भी मजदूरी करने पर था । इस प्रकार दिन ब दिन तेल का प्रमाण बढ़ता चला । कुछ घड़े जितना तेल का देवादार हो गया । शिवदेव शेठ ने कहा कि, 'या तो हमारा चड़ाया हुआ तेल दो या हमारे घर दासी बनकर रहो' सम्मति तेल न दे सकी इसलिए शेठ के घर दासी बनकर रही । शेठ का सारा काम करती है और दुःख में दिन गुझारती है । सम्मत मुनि कुछ वर्ष के बाद वापस उस गाँव में आ पहुँचे । उन्होंने घर में बहन को नहीं देखा, इसलिए वापस चले गए और रास्ते में बहन को देखा, इसलिए मुनि ने पूछा, बहन ने रोते हुए सारी बात बताई। यह सुनकर मुनि को खेद हुआ । मेरे निमित्त से उधार लाई हुई चीज मैंने प्रमाद से ली, जिससे बहन को दासी बनने का समय आया । लोकोत्तर प्रामित्य दो प्रकार से । कुछ समय के बाद वापस करने की शर्त से वस्त्र पात्र आदि साधु से लेना। कुछ समय के बाद वस्त्र आदि वापस देने का तय करके वस्त्र आदि लिया हो तो वो वस्त्र आदि वापस करने के समय में ही जीर्ण हो जाए, फट जाए या खो जाए या कोई ले जाए इसलिए उसे वापस न करने से तकरार हो, इसलिए इस प्रकार वस्त्र आदि मत लेना । उसके जैसा दूसरा देने का तय करके लिया हो, फिर उस साधु को उस वस्त्र से भी अच्छा वस्त्र देने से उस साधु को पसंद न आए । जैसा था ऐसा ही माँगे और इसलिए तकरार हो । इसलिए यह वस्त्रादि नहीं लेना चाहिए । वस्त्रादि की कमी हो तो साधु वापस करने की शर्त से ले या दे नहीं, लेकिन ऐसे ही ले या दे । गुरु की सेवा आदि में आलसी साधु को वैयावच्च करने के लिए वस्त्रादि देने का तय कर सके । उस समय वो वस्त्रादि खुद सीधा न दे, लेकिन आचार्य को दे । फिर आचार्य आदि बुजुर्ग वो साधु को दे । जिससे किसी दिन तकरार की संभावना न रहे। सूत्र-३५१-३५६ साधु के लिए चीज की अदल-बदल करके देना परावर्तित । परावर्तित दो प्रकार से | लौकिक और लोकोत्तर । लौकिक में एक चीज देकर ऐसी ही चीज दूसरों से लेना । या एक चीज देकर उसके बदले में दूसरी चीज लेना । लोकोत्तर में भी ऊक्त अनुसार वो चीज देकर वो चीज लेनी या देकर उसके बदले में दूसरी चीज लेना मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(पिंडनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 25
SR No.034710
Book TitleAgam 41 2 Pindniryukti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 41 2, & agam_pindniryukti
File Size2 MB
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