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________________ आगम सूत्र ४१/२, मूलसूत्र-२/२, पिंडनियुक्ति' बीमारी में यह साधु ज्यादा खानेवाले हैं। खुद के पेट को भी नहीं पहचानते, इसलिए बीमार होते हैं आदि दूसरे लोग बोले । इसलिए प्रवचन विराधना । आधाकर्मी आहार खाने में इसी प्रकार दोष रहे हैं । इसलिए आधाकर्मी आहार नहीं खाना चाहिए। श्री जिनेश्वर भगवंत की आज्ञा का भंग करके जो साधु आधाकर्मी आहार खाते हैं, उस साधु को सद्गति दिलानेवाले अनुष्ठान रूप संयम की आराधना नहीं होती । लेकिन संयम का घात होने से नरक आदि दुर्गति में जाना होता है । इस लोक में राजा की आज्ञा का भंग करने से जीव को दंड़ना पड़ता है । यानि जन्म मरण आदि कई प्रकार के दुःख भुगतने पड़ते हैं । आधाकर्मी आहार खाने की बुद्धिवाले शुद्ध आहार खाने के बावजूद भी आज्ञाभंग के दोष से दंड़ते हैं और शुद्ध आहार की गवेषणा करनेवाले को शायद आधाकर्मी आहार खाने में आ जाए तो भी वो दंड़ते नहीं क्योंकि उन्होंने श्री तीर्थंकर भगवंत की आज्ञा का पालन किया है। आधाकर्मी आहार देने में कौन-से दोष हैं ? निर्वाह होता हो उस समय आधाकर्मी अशुद्ध आहार देने से, देनेवाला और लेनेवाला दोनों का अहित होता है । लेकिन निर्वाह न होता हो (यानि ग्लान आदि कारण से) तो देने में और लेने में दोनों को हितावह है । आधाकर्मी आहार चारित्र को नष्ट करता है, इससे गृहस्थ के लिए उत्सर्ग से साधु को आधाकर्मी आहार का दान देना योग्य नहीं माना, फिर भी ग्लान आदि कारण से या अकाल आदि के समय ऐतराझ नहीं है बल्कि योग्य है और फायदेमंद है । जैसे बुखार से पीड़ित दर्दी को घेबर आदि देनेवाले वैद्य दोनों का अहित करते हैं और भस्मकपातादि की बीमारी में घेबर आदि दोनों का हित करते हैं, ऐसे बिना कारण देने से देनेवाला और लेनेवाला दोनों का अहित हो, बिना कारण देने से दोनों को फायदा हो। __आधाकर्म मालूम करने के लिए किस प्रकार पूछे ? आधाकर्मी आहार ग्रहण न हो जाए इसलिए पूछना चाहिए । वो विधिवत् पूछना चाहिए लेकिन अविधिपूर्वक नहीं पूछना चाहिए । उसमें जो एक विधिवत् पूछने का और दूसरा अविधिवत् पूछने का उसमें अविधिपूर्वक पूछने से नुकसान होता है और उस पर दृष्टांत । शाली नाम के एक गाँव में एक ग्रामणी नाम का वणिक रहता था । उसकी पत्नी भी ग्रामणी नाम की थी । एक बार वणिक दुकान पर गया था तब उसके घर एक साधु भिक्षा के लिए आए । ग्रामणी साधु को शालिजात के चावल वहोराने लगी । चावल आधाकर्मी है या शुद्ध ? वो पता करने के लिए साधुने उस स्त्री को पूछा कि, 'हे श्राविका ! यह चावल कहाँ के हैं ?' उस स्त्री ने कहा कि, मुझे नहीं पता । मेरे पति जाने, दुकान जाकर पूछ लो । इसलिए साधु ने दुकान पर जाकर पूछा । वणिक ने कहा कि, मगध देश के सीमाड़े के गोबर गाँव से आए हैं । यह सुनकर वो साधु गोबर गाँव जाने के लिए तैयार हो गया । वहाँ भी उसे शक हुआ कि, यह रास्ता किसी श्रावक ने साधु के लिए बनाया होता तो? उस शक से रास्ता छोड़कर उल्टे रास्ते पर चलने लगा । इसलिए पाँव में काँटे-कंकर लगे, कुत्ते ने काट लिया, सूर्य की गर्मी भी बढ़ने लगी । आधाकर्म की शंका से पेड़ की छाँव में भी नहीं बैठता । इसलिए ज्यादा गर्मी लगने से वो साधु मूर्छित हो गया, काफी परेशान हो गया। इस प्रकार करने से ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना नहीं हो सकती । यह अविधि पृच्छा है, इस प्रकार नहीं पूछना चाहिए, लेकिन विधिवत् पूछे, वो बताते हैं - उस देश में चीज की कमी हो और वहाँ कईं बार देखा जाए, घर में लोग कम हो और खाना ज्यादा दिखे । काफी आग्रह करते हो तो वहाँ पूछे कि यह चीज किसके लिए और किसके निमित्त से बनाई है ? उस देश में काफी चीज होती हो, तो वहाँ पूछने की जरुर नहीं है । लेकिन घर में लोग कम हो और आग्रह करे तो पूछे । अनादर यानि काफी आग्रह न हो और घर में पुरुष कम हो तो पूछने की जरुरत नहीं है । क्योंकि आधाकर्मी हो तो आग्रह करे । देनेवाला सरल हो तो पूछने पर जैसा हो वैसा बोल दे कि, भगवन् ! यह तुम्हारे लिए बनाया है । मायावी हो तो यह ग्रहण करो । तुम्हारे लिए कुछ नहीं बनाया । ऐसा कहकर घर में दूसरों के सामने देखे या हँसे । मुँह पर के भाव से पता चले कि 'यह आधाकर्मी है ।' यह किसके लिए बनाया है ? ऐसा पूछने से देनेवाला क्रोधित हो और बोले कि, तुमको क्या ? तो वहाँ आहार ग्रहण करने में शक मत करना। मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(पिंडनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 17
SR No.034710
Book TitleAgam 41 2 Pindniryukti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 41 2, & agam_pindniryukti
File Size2 MB
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