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आगम सूत्र ४१/२, मूलसूत्र-२/२, पिंडनियुक्ति' (वेश) से नहीं । लिंग से साधर्मिक प्रवचन से नहीं । प्रवचन से साधर्मिक और लिंग से साधर्मिक । प्रवचन से नहीं और लिंग से नहीं । इस प्रकार बाकी के बीस भेद में ४-४ भांगा समझना ।
प्रवचन से साधर्मिक लेकिन लिंग से नहीं। अविरति सम्यग्दृष्टि से लेकर श्रावक होकर दशवीं प्रतिमा वहन करनेवाले श्रावक तक लिंग से साधर्मिक नहीं है । लिंग से साधर्मिक लेकिन प्रवचन से साधर्मिक नहीं - श्रावक की ग्यारहवीं प्रतिमा वहन करनेवाले (मुंडन करवाया हो) श्रावक लिंग से साधर्मिक है । लेकिन प्रवचन से साधर्मिक नहीं । उनके लिए बनाया गया आहार साधु को कल्पे । निह्नव संघ बाहर होने से प्रवचन से साधर्मिक नहीं लेकिन लिंग से साधर्मिक है। उनके लिए बनाया गया साधु को कल्पे । लेकिन यदि उसे निह्नव की तरह लोग पहचानते न हो तो ऐसे निह्नव के लिए बनाया भी साधु को न कल्पे । प्रवचन से साधर्मिक और लिंग से भी साधर्मिक- साधु या ग्यारहवी प्रतिमा वहन करनेवाले श्रावक । साधु के लिए किया गया न कल्पे, श्रावक के लिए किया गया कल्पे । प्रवचन से साधर्मिक नहीं और लिंग से भी साधर्मिक नहीं गृहस्थ, प्रत्येक बुद्ध और तीर्थंकर, उनके लिए किया हुआ साधु को कल्पे । क्योंकि प्रत्येक बुद्ध और श्री तीर्थंकर लिंग और प्रवचन से अतीत हैं । इसी प्रकार प्रवचन और दर्शन की, प्रवचन और ज्ञान की, प्रवचन और चारित्र की, प्रवचन और अभिग्रह की, प्रवचन और भावना की, लिंग और दर्शन या ज्ञान या चारित्र या अभिग्रह या भावना की चतुर्भंगी, दर्शन के साथ ज्ञान, चारित्र, अभिग्रह और भावना की चतुर्भंगी, ज्ञान के साथ चारित्र या अभिग्रह या भावना की चतुर्भंगी और अन्त में चारित्र के साथ अभिग्रह और भावना की चतुर्भगी ऐसे दूसरी बीस चतुर्भंगी की जाती है । इन हर एक भेदमें साधु के लिए किया गया हो तो साधु को न कल्पे । तीर्थंकर, प्रत्येकबुद्ध, निह्नवों और श्रावक के लिए किया गया हो तो साधु को कल्पे
किस प्रकार से उपयोग करने से आधाकर्म बँधता है ? प्रतिसेवना यानि आधाकर्मी दोषवाले आहार आदि खाना, प्रतिश्रवणा यानि आधाकर्मी आहार के न्योते का स्वीकारना । संवास यानि आधाकर्मी आहार खानेवाले के साथ रहना । अनुमोदन यानि आधाकर्मी आहार खानेवाले की प्रशंसा करना । इन चार प्रकार के व्यवहार से आधा कर्म दोष का कर्मबँध होता है । इसके लिए चोर, राजपुत्र, चोर की पल्ली और राजदुष्ट मानव का, ऐसे चार दृष्टांत
प्रतिसेवना -दूसरों के लाया हुआ आधाकर्मी आहार खाना । दूसरों के लाया हुआ आधाकर्मी आहार खाने वाले साधु को, कोइ साधु कहे कि, 'तुम संयत होकर आधाकर्मी आहार क्यों खाते हो' ऐसा सुनकर वो जवा है कि, इसमें मुझे कोई दोष नहीं है क्योंकि मैं आधाकर्मी आहार नहीं लाया हूँ, वो तो जो लाते हैं उनको दोष लगता है। जैसे अंगारे दूसरों से नीकलवाए तो खुद नहीं जलता, ऐसे आधाकर्मी लाए तो उसे दोष लगे। इसमें मुझे क्या ? इस प्रकार उल्टी मिसाल दे और दूसरों का लाया हुआ आहार खुद खाए उसे प्रतिसेवना कहते हैं । दूसरों के लाया हुआ आधाकर्मी आहार साधु खाए तो उसे खाने से आत्मा पापकर्म से बँधता है । वो समझने के लिए चोर का दृष्टांत -किसी एक गाँव में चोर लोग रहते थे। एक बार कुछ चोर पास के गाँव में जाकर कुछ गाय को उठाकर अपने गाँव की ओर आ रहे थे, वहाँ रास्ते में दूसरे कुछ चोर और मुसाफिर मिले । सब साथ-साथ आगे चलते हैं। ऐसा करने से अपने देश की हद आ गई, वे निर्भय होकर किसी पेड़ के नीचे विश्राम करने बैठे और भोजन करते समय कुछ गाय को मार डाला और उनका माँस पकाने लगे । उस समय दूसरे मुसाफिर आए । चोरों ने उन्हें भी न्यौता दिया । पकाया हुआ माँस खाने के लिए दिया । उसमें से कुछ ने 'गाय के माँस का भक्षण पापकारक है। ऐसा समझकर माँस न खाया, कुछ परोसते थे, कुछ खाते थे, उतने में सिपाही आए और सबको घेरकर पकड़ लिया । जो रास्ते में इकट्ठे हुए थे वो कहने लगे कि, 'हमने चोरी नहीं की, हम तो रास्ते में मिले थे ।' मुसाफिर ने कहा कि, हम तो इस ओर से आते हैं और यहाँ विसामा लेत हैं । सिपाही ने उनकी एक न सुनी और सबको मार
| चोरी न करने के बावजद रास्ते में मिलने से चोर के साथ मर गए । इस दृष्टांत में चोरों को रास्ते में और भोजन के समय ही मुसाफिर मिले । उसमें भी जो भोजन करने में नहीं थे केवल परोसने में थे, उनको भी सिपाही ने पकड़ लिया और मार डाला । ऐसे जो साधु दूसरे साधुओं को पापकर्मी आहार देते हैं, वो साधु नरक आदि गति
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(पिंडनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद”
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