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________________ २-६ ४-० ه ه ه ه आगम सूत्र ४१/१, मूलसूत्र-२/१, 'ओघनियुक्ति' सूत्र-४७७-४९७ सुबह में पडिलेहण करने के बाद स्वाध्याय करना, पादोन पोरिसी के समय पात्रा की पडिलेहणा करनी चाहिए । फिर शाम को पादोन-पोरिसी-चरम पोरिसी में दूसरी बार पडिलेहणा करनी चाहिए । पोरिसीकाल निश्चय से और व्यवहार से ऐसे दो प्रकार से हैं। महिना पोरिसी चरम पोरिसी पगला - अंगुल पगला - अंगुल आषाढ़ सुद-१५ २-७ श्रावण सुद-१५ २-४ २-१० भादो सुद-१५ २-५ ३-४ आसो सुद-१५ ३-० ३-८ कार्तिक सुद-१५ ३-४ मागसर सुद-१५ ४-६ पोष सुद-१५ ४-१० महा सुद-१५ ४-६ फागुन सुद-१५ ४-० चैत्र सुद-१५ ३-० ३-८ वैशाख सुद-१५ २-८ ३-४ जेठ सुद-१५ २-४ २-१० पात्रा की पडिलेहण करते समय पाँच इन्द्रिय का उपयोग अच्छी प्रकार से करना । पात्रा जमीं से चार अंगुल ऊपर रखना । पात्रादि पर भ्रमर आदि हो, तो यतनापूर्वक दूर रखना, पहले पात्रा फिर गुच्छा और उसके बाद पड़ला की पडिलेहणा करनी । पडिलेहण का समय गुजर जाए तो, एक कल्याणक का प्रायश्चित्त आता है। यदि पात्रा को गृहकोकिला आदि का घर लगा हो तो उस पात्रा को प्रहर तक एक ओर रख देना उतने में घर गिर पड़े तो ठीक वरना यदि दूसरा हो, तो पूरा पात्र रख देना । दूसरा पात्र न हो तो पात्रा का उतना हिस्सा काटकर एक ओर रख दे यदि सूखी मिट्टी का घर किया हो और उसमें यदि कीड़े न हो तो वो मिट्टी दूर कर दे । ऋतुबद्ध काल में - शर्दी में और गर्मी में पात्रादि पडिलेहण करके बाँधकर रखना । क्योंकि अग्नि, चोर आदि के भय के समय, अचानक सारे उपधि आदि लेकर सूख से नीकल सके, यदि बाँधकर न रखा हो तो अग्नि में जल जाए । जल्दबाझी में लेने जाए तो पात्रादि तूट जाए, बारिस में इसका डर नहीं रहता। सूत्र - ४९८-५३२ स्थंडिल-अनापात और असंलोक शुद्ध हैं । अनापात-यानि स्वपक्ष (साधु) परपक्ष (दूसरे) में से किसी का वहाँ आवागमन न हो । असंलोक यानि स्थंडिल बैठे हो वहाँ कोई देख न सके । स्थंडिल भूमि निम्न प्रकार होती है अनापात और असंलोक - किसी का आना-जाना न हो, ऐसे कोई देखे नहीं । अनापात और संलोक - किसी का आना-जाना न हो लेकिन देख सकते हो । आपात दो प्रकार से स्वपक्ष संयत वर्ग परपक्ष गृहस्थ आदि । स्वपक्ष आपात दो प्रकार से साधु और साध्वी । साधु में संविज्ञ और असंविज्ञ । संविज्ञ में धर्मी और अधर्म । परपक्ष आपात में दो प्रकार - मानव आपात और तिर्यंच आपात | मानव आपात तीन प्रकार से - पुरुष, स्त्री और नपुंसक, तिर्यंच आपात तीन प्रकार से - पुरुष, स्त्री और नपुंसक उसमें पुरुष आपात तीन प्रकार से - राजा श्रेष्ठि और सामान्य । और फिर शौचवादी और अशौचवादी । इस प्रकार स्त्री और नपुंसक में भी तीन भेद समझना । उपर्युक्त तिर्यंच आपात दो प्रकार से - लड़ाकु और बिना लड़ाकु और फिर जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । हरएक में पुरुष, स्त्री और नपुंसक जाति के उसमें निन्दनीय और अनिन्दनीय, मुख्यतया अनापात और असंलोक में स्थंडिल मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(ओघनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 26
SR No.034709
Book TitleAgam 41 1 Oghniryukti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 41 1, & agam_oghniryukti
File Size2 MB
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