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________________ आगम सूत्र ४१/१, मूलसूत्र-२/१, 'ओघनियुक्ति' आदि करके जाए । रूखा-सूखा खाकर या यतनापूर्वक खाकर जाए । जघन्य तीन कवल या तीन भिक्षा उत्कृष्ट से पाँच कवल या पाँच भिक्षा। सहिष्णु हो तो प्रथमालिका किए बिना जाए गोचरी लाने की विधि बताते हुए कहते हैं। एक पात्र में आहार, दूसरे पात्रा में पानी, एक में आचार्य आदि प्रायोग्य आहार, दूसरे में जीव संसृष्टादि न हो ऐसा आहार या पानी ग्रहण करे । सूत्र - ४२९-४३५ पडिलेहणाद्वार दो प्रकार से एक केवली की दूसरी छद्मस्थ की । दोनों बाहर से और अभ्यंतर से बाहर यानि द्रव्य और अभ्यंतर यानि भाव । केवली की पडिलेहणा प्राणी से संसक्त द्रव्य विषय की होती है। यानि कपडे आदि पर जीवजन्तु हो तो पडिलेहणा करे? छद्मस्थ की पडिलेहणा जानवर से संसक्त या असंसक्त द्रव्य विषय की होती है । यानि कपड़े आदि पर जीवजन्तु हो या न हो, तो भी पडिलेहणा करनी पड़ती है । पडिलेहणा द्रव्य से केवली के लिए वस्त्र आदि जीवजन्तु से संसक्त हो तो पडिलेहणा करते हैं लेकिन जीव से संसक्त न हो तो पडिलेहणा नहीं होती । भाव से केवली की पडिलेहणा में - वेदनीय कर्म काफी भुगतना हो और आयु कर्म कम हो तो केवली भगवंत केवली समुद्घात करते हैं। द्रव्य से छद्मस्थ - संसक्त या असंसक्त वस्त्र आदि की पडिलेहणा करनी वो। भाव से छद्मस्थ की - रात को जगे तब सोचे कि, 'मैंने क्या किया, मुझे क्या करना बाकी है, करने के योग्य तप आदि क्या नहीं करता ?' इत्यादि सूत्र-४३६-४६९ स्थान, उपकरण, स्थंडिल, अवष्टंभ और मार्ग का पडिलेहण करना । स्थान- तीन प्रकार से । कायोत्सर्ग, बैठना, सोना । कायोत्सर्ग ठल्ला मात्रा जाकर गुरु के पास आकर इरियावही करके काऊस्सग्ग करे । योग्य स्थान पर चक्षु से देखकर प्रमार्जना करके काऊस्सग्ग करे । काऊस्सग्ग गुरु के सामने या दोनों ओर या पीछे न करना, एवं आने-जाने का मार्ग रोककर न करना । बैठना - बैठते समय जंघा और साँथल का बीच का हिस्सा प्रमार्जन करने के बाद उत्कटुक आसन पर रहकर, भूमि प्रमार्जित करके बैठना । सोना - सो रहे हो तब बगल बदलते हुए प्रमार्जन करके बगल बदलना । सोते समय भी पूंजकर सोना । उपकरण - दो प्रकार से । १. वस्त्र, २. पात्र सम्बन्धी । सुबह में और शाम को हमेशा दो समय पडिलेहणा करना । पहले मुहपत्ति पडिलेहने के बाद दूसरे वस्त्र आदि की पडिलेहणा करना । वस्त्र की पडिलेहणा विधि- पहले मति कल्पना की परे वस्त्र के तीन हिस्से करके देखना, फिर पीछे की ओर तीन टकडे करके देखना । तीन बार छ-छ पुरिमा करना । उत्कटक आसन पर बैठकर विधिवत् पडिलेहणा करे, पडिलेहणा करते समय इतनी परवा करना । पडिलेहण करते समय वस्त्र या शरीर को न नचाना । साँबिल की प्रकार वस्त्र को ऊंचा न करना । वस्त्र को नौ अखोड़ा पखोड़ा और छ बार प्रस्फोटन करना, पडिलेहणा करते हुए वस्त्र या देह को ऊपर छत या छापरे को या दीवार या भूमि को लगाना । पडिलेहण करते समय जल्दबाझी न करना । वेदिका दोष का वर्जन करना । उर्ध्ववेदिका - ढंकनी पर हाथ रखना । अधोवेदिका ढंकनी के नीचे हाथ रखना । तिर्यक् वेदिका - संडासा के बीच में हाथ रखना । द्विघात वेदिका - दो हाथ के बीच में पाँव रखना । एगतो वेदिका - एक हाथ दो पाँव के भीतर दूसरा हाथ बाहर रखना । वस्त्र और शरीर अच्छी प्रकार से सीधे रखना । वस्त्र लम्बा न रखे । वस्त्र को लटकाकर न रखे । वस्त्र के अच्छी प्रकार से तीन हिस्से करे - एक के बाद एक वस्त्र की पडिलेहणा करे । एक साथ ज्यादा वस्त्र न देखे । अच्छी प्रकार इस्तमाल पूर्वक वस्त्र की पडिलेहणा करे । अखोड़ा-पखोड़ा की गिनती अच्छी प्रकार से रखे । सुबह में पडिलेहणा का समय - अरूणोदय-प्रभा फटे तब पडिलेहणा करना । अरूणोदय प्रभा फटे तब आवश्यक प्रतिक्रमण करने के बाद पडिलेहणा करना एक दूसरे का मुँह देख सके, तब पडिलेहणा करना । हाथ की लकीर दिखे तब पडिलेहणा करना । सिद्धांतवादी कहते हैं कि यह सभी आदेश सही नहीं है। में अंधेरा हो तो सूर्य नीकला हो तो भी हाथ की लकीरे न दिखे । बाकी के तीन में अंधेरा होता है । उत्सर्ग की मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(ओघनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 24
SR No.034709
Book TitleAgam 41 1 Oghniryukti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 41 1, & agam_oghniryukti
File Size2 MB
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