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आगम सूत्र ४०, मूलसूत्र-१, 'आवस्सय'
अध्ययन/सूत्रांक सूत्र - ९०
भवचरिम यानि जीवन का अन्त दिखते ही (अशन आदि चार आहार का पच्चक्खाण करता है ।) (शेष पूर्व सूत्र ८९ अनुसार जानना ।) सूत्र - ९१
अभिग्रह पूर्वक अशनादि चार आहार का पच्चक्खाण करता है । (शेष पूर्व सूत्र ८९ अनुसार जानना ।) सूत्र- ९२
विगई का पच्चक्खाण करता है । सिवा कि अनाभोग सहसाकार, लेपालेप, गृहस्थ संसृष्ट, उत्क्षिप्त विवेक, प्रतीत्यम्रक्षित, परिष्ठापन, महत्तर, सर्व समाधि हेतु । इतने कारण से पच्चक्खाण छोड दे। सूत्र-८२ से ९२ के महत्त्व के शब्द की व्याख्या ।
पच्चक्खाण यानि नियम या गुण धारणा। नमस्कार सहित - जिसमें मुहूर्त (दो प्रहर) प्रमाण काल मान है। अन्नत्थ - सिवा कि दिए गए कारण के अलावा । अनाभोग भूल जाने से - सहसाकार - अचानक महत्तराकार - बड़ा प्रयोजन या कारण उपस्थित होने से सव्वसमाहि-तीव्र बिमारी आदि कारण से चित्त की समाधि टिकाए रखने के लिए। पच्छन्नकाल - समय को न जानने से दिशामोह - दिशा के लिए भ्रम हो और काल का पता न चले । साधुवचन - साधु जोरो से किसी शब्द बोले और विपरीत समझे। लेपालेप - न कल्पती चीज का संस्पर्श हो गया हो । गृहस्थ संसृष्ट – गृहस्थ से मिश्र हुआ हो वो । उत्क्षिप्त विवेक - जिन पर विगई रखकर उठा लिया हो । प्रतीत्यम्रक्षित - सहज घी आदि लगाया हो वैसी चीज । गुरु अभ्युत्थान - गुरु या वडील आने से खड़ा होना पड़े।
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मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (आवस्सय) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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