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________________ आगम सूत्र ३७, छेदसूत्र-४, 'दशाश्रुतस्कन्ध' उद्देशक/सूत्र संतुष्ट होकर यानशाला में गए, रथ को प्रमार्जित किया, शोभायमान किया, उसके बाद वाहनशाला में आकर बैलों को नीकाला, उनकी पीठ पसवारकर बाहर लाए, उन बैलों के पर झुल वगैरह रखकर शोभायमान किए, अनेक अलंकार पहनाए, रथ में जोतकर रथ को बाहर नीकाला, सारथि भी हाथ में सुन्दर चाबुक लेकर बैठा । श्रेणिक राजा के पास आकर श्रेष्ठ धार्मिक रथ सुसज्जित हो जाने का निवेदन किया । और बैठने के लिए विज्ञप्ति की। सूत्र- ९९ श्रेणिक राजा बिंबिसार यानचालक से पूर्वोक्त बात सूनकर हर्षित तुष्टित हुआ । स्नानगृह में प्रविष्ट हुआ। यावत् कल्पवृक्ष समान अलंकृत एवं विभूषित होकर वह श्रेणिक नरेन्द्र, यावत् स्नानगृह से नीकला । चेल्लणादेवी के पास आया और चेल्लणा देवी को कहा-हे देवानुप्रिये ! श्रमण भगवान महावीर यावत् गुणशील चैत्य में बिराजमान हैं । वहाँ जाकर उनको वन्दन, नमस्कार, सत्कार, सन्मान करने चले । वे कल्याणरूप, मंगलभूत, देवाधिदेव, ज्ञानी की पर्युपासना करेंगे, उनकी पर्युपासना यह और आगामी भवों के हित के लिए, सुख के लिए, कल्याण के लिए, मोक्ष के लिए और भवोभव के सुख के लिए होगी। सूत्र-१०० राजा श्रेणिक से यह कथन सूनकर चेल्लणादेवी हर्षित हुई, संतुष्ट हुई यावत् स्नानगृह में जाकर स्नान कर के बलिकर्म किया, कौतुक-मंगल किया, अपने सुकुमार पैरों में झांझर, कमर में मणिजड़ित कन्दोरा, गले में एकावली हार, हाथ में कड़े और कंकण, अंगुली में मुद्रिका, कंठ से उरोज तक मरकतमणि का त्रिसराहार धारण किया । कान में पहने हुए कुंडल से उनका मुख शोभायमान था । श्रेष्ठ गहने और रत्नालंकारों से वह विभूषित थी। सर्वश्रेष्ठ रेशम का सुंदर और सुकोमल रमणीय उत्तरीय धारण किया था । सर्वऋतु में विकसीत ऐसे सुन्दर सुगन्धी फूलों की माला पहने हुए, काला अगरु इत्यादि धूप से सुगंधित वह लक्ष्मी सी शोभायुक्त वेशभूषावाली चेल्लणा अनेक कुब्ज यावत् चिलाती दासीओं के वृन्द से घिरी हुई-उपस्थापन शाला में राजा श्रेणिक के पास आई। सूत्र - १०१ तब श्रेणिक राजा चेल्लणादेवी के साथ श्रेष्ठ धार्मिक रथ में आरूढ़ हुआ यावत् भगवान महावीर के पास आए यावत् भगवन् को वन्दन नमस्कार करके पर्युपासना करने लगे । उस वक्त भगवान महावीर ने ऋषि, यति, मुनि, मनुष्य और देवों की पर्षदा में तथा श्रेणिक राजा बिंबिसार और रानी चेल्लणा यावत् पर्षदा को धर्मदेशना सुनाई । पर्षदा और राजा श्रेणिक वापिस लौटे । सूत्र-१०२ उस वक्त राजा श्रेणिक एवं चेल्लणा देवी को देखकर कितनेक निर्ग्रन्थ एवं निर्ग्रन्थी के मन में इस प्रकार का अध्यवसाय यावत् संकल्प उत्पन्न हुआ कि अरे ! यह श्रेणिक राजा महती ऋद्धिवाला यावत् परमसुखी है, वह स्नान, बलिकर्म, तिलक, मांगलिक, प्रायश्चित्त करके सर्वालंकार से विभूषित होकर चेल्लणा देवी के साथ मनुष्य सम्बन्धी कामभोग भुगत रहा है । हमने देवलोक के देव तो नहीं देखे, हमारे सामने तो यही साक्षात देव हैं । यदि इस सुचरित तप, नियम, ब्रह्मचर्य का अगर कोई कल्याणकारी विशिष्ट फल हो तो हम भी भावि में इस प्रकार के औदारिक मानुषिक भोग का सेवन करे । कितनोने सोचा कि अहो ! यह चेल्लणा देवी महती ऋद्धिवाली यावत् परम सुखी है-यावत् सर्व अलंकारों से विभूषित होकर श्रेणिक राजा के साथ औदारिक मानुषिक कामभोग सेवन करती हुई विचरती है । हमने देवलोक की देवी को तो नहीं देखा, किन्तु यह साक्षात देवी हैं । यदि हमारे सुचरित तप-नियम और ब्रह्मचर्य का कोई कल्याणकारी फल हो तो हम भी आगामी भव में ऐसे ही भोगों का सेवन करे। सूत्र - १०३ श्रमण भगवान महावीर ने बहुत से साधु-साध्वीओं को कहा-श्रेणिक राजा और चेल्लणा रानी को देखकर क्या-यावत् इस प्रकार के अध्यवसाय आपको उत्पन्न हुए यावत् क्या यह बात सही है ? मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(दशाश्रुतस्कन्ध)" आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 25
SR No.034705
Book TitleAgam 37 Dashashrutskandha Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages30
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 37, & agam_dashashrutaskandh
File Size2 MB
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