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आगम सूत्र ३७, छेदसूत्र- ४, 'दशाश्रुतस्कन्ध'
सूत्र - ७५ ७७
जो पापविरत मुमुक्षु, संयत तपस्वी को धर्म से भ्रष्ट करे, अज्ञानी ऐसा वह जिनेश्वर के अवर्णवाद करे, अनेक जीवों को न्यायमार्ग से भ्रष्ट करे, न्यायमार्ग की द्वेषपूर्वक निन्दा करे तो वह महामोहनीय कर्म बांधता है । सूत्र - ७८-७९
जिस आचार्य या उपाध्याय के पास ज्ञान एवं आचार की शिक्षा ली हो उसी की अवहेलना करे, अहंकारी ऐसा वह उन आचार्य-उपाध्याय की सम्यक् सेवा न करे, आदर-सत्कार न करे, तब महामोहनीय कर्म बांधता है। सूत्र - ८०-८३
उद्देशक / सूत्र
हुए भी अपने को बहुश्रुत, स्वाध्यायी, शास्त्रज्ञ कहे, तपस्वी न होते हुए भी अपने को तपस्वी बताए, वह सर्व जनों में सबसे बड़ा चोर है । 'शक्तिमान होते हुए भी ग्लान मुनि की सेवा न करना'' - ऐसा कहे, वह महामूर्ख, मायावी और मिथ्यात्वी - कलुषित चित्त होकर अपने आत्मा का अहित करता है । यह सब महामोहनीय कर्म बांधते हैं ।
सूत्र - ८४
चतुर्विध श्रीसंघ में भेद उत्पन्न करने के लिए जो कलह के अनेक प्रसंग उपस्थित करता है, वह महामोहनीय कर्म बांधता है ।
सूत्र- ८५-८६
जो (वशीकरण आदि) अधार्मिक योग का सेवन, स्वसन्मान, प्रसिद्धि एवं प्रिय व्यक्ति को खुश करने के लिए बारबार विधिपूर्वक प्रयोग करे, जीवहिंसादि करके वशीकरण प्रयोग करे, प्राप्त भोगों से अतृप्त व्यक्ति, मानुषिक और दैवी भोगों की बारबार अभिलाषा करे वह महामोहनीय कर्म बांधता है।
सूत्र- ८७-८८
जो ऋद्धि, द्युति, यश, वर्ण एवं बल-वीर्य युक्त देवताओं का अवर्णवाद करता है, जो अज्ञानी पूजा की अभिलाषा से देव-यक्ष और असूरों को न देखते हुए भी मैं इन सबको देखता हूँ ऐसा कहे- वह महामोहनीय कर्म बांधता है ।
सूत्र - ८९
ये तीस स्थान सर्वोत्कृष्ट अशुभ फल देनेवाले बताये हैं । चित्त को मलिन करते हैं, इसलिए भिक्षु इसका आचरण न करे और आत्मगवेषी होकर विचरे ।
सूत्र - ९० ९२
जो भिक्षु यह जानकर पूर्वकृत् कृत्य अकृत्य का परित्याग करे, उन उन संयम स्थानों का सेवन करे जिससे वह आचारवान बने, पंचाचार पालन से सुरक्षित रहे, अनुत्तरधर्म में स्थिर होकर अपने सर्व दोषों का परित्याग करे, जो धर्मार्थी, भिक्षु शुद्धात्मा होकर अपने कर्तव्यों का ज्ञाता होता है, उनकी इस लोक में कीर्ति होती है और परलोक सुगति होती है ।
सूत्र - ९३
दृढ़, पराक्रमी, शूरवीर भिक्षु सर्व मोहस्थानो का ज्ञाता होकर उनसे मुक्त होता है, जन्म-मरण का अतिक्रमण करता है । ऐसा मैं कहता हूँ ।
दशा-९ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " ( दशाश्रुतस्कन्ध)” आगम सूत्र - हिन्दी अनुवाद”
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